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श्वेताम्बर-परम्परा की श्रमणियाँ
गोलवड़
55. श्री संयरसाश्रीजी 2022 खाखर लालजी छाडवा 2041 दिसं.18 56. श्री वीररत्नाश्रीजी 2025 लाकडिया धनजी भाई 2042 वै.श.7 57. श्री शासनरसाश्रीजी 2021 पालिताणा रतिलाल संघवी 2043 मई 19 58. श्री चारूशीलाश्रीजी 2025 खाखर मणिलाल विकम 2043 वै.शु. 3 59. श्री नम्रशीलाश्रीजी 2029 खाखर तलकशी गाला 2044 मा.शु.10 60. श्री सिद्धांतरसाश्रीजी 2023 गोलवड चंपकलाल पुनमिया 2045 फर.7 61. श्री चंद्रकलाश्रीजी 1992 मेराऊ करमशी गाला 2045 फर.7 62. श्री पावनगिराश्रीजी 2023 कांडागरा नागजी भाई 2045 मा.शु. 10 63. श्री विपुलगिराश्रीजी 2019 भाडिया चापशीभाई 2046 वै.शु.6 64. श्री प्रशांतगिराश्रीजी 2026 भुजपुर वशनजी भेदा 2047 मा.कृ. 14 65. श्री नंददक्षाश्रीजी 2024 अहमदाबाद भमेश शाह 2047 वै.शु.13 66. श्री हितदर्शनाश्रीजी 2025 भाडिया प्रेमजी मारु 2048 वै.शु.5 67. श्री संवेगरसाश्रीजी 2034 भाडिया नानजी मारु 2052 जन. 24 68. श्री मैत्रीकलाश्रीजी 2045 खाखर बल्लभजी गाला 2053 जन. 24 69. श्री दर्शितप्रज्ञाश्रीजी 2025 कोडाय खीमजी बोरिया 2053 मा.शु.3 70. श्री मोक्षव्रताश्रीजी 2030 भुजपुर कांतिलाल गोसर 2053 जन. 24
चेम्बुर
श्री भव्यानंदश्रीजी अहमदाबाद श्री निजानंदश्रीजी विक्रोली श्री भव्यानंदश्रीजी मोटी खाखर श्री पद्मगीताश्रीजी नानीखाखर श्री पद्मगीताश्रीजी
श्री भव्यानंदश्रीजी चेम्बूर श्री ॐकारश्रीजी थाणा श्री पद्मरेखा श्रीजी नाना भाडिया श्री जयनंदिताश्रीजी पालिताणा श्री पद्यरेखाश्रीजी राजनगर श्री सुदक्षाश्रीजी तीथल श्री प्रियदर्शनाश्रीजी थाणा
श्री संयमरसाश्रीजी थाणा श्री पुनीतकलाश्रीजी
श्री पार्श्वचंद्राश्रीजी थाणा
श्री मोक्षानंद श्रीजी
चेम्बुर
5.8 प्रशस्ति-ग्रंथों व हस्तलिखित प्रतियों में श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रमणियाँ 5.8.1 महानंदश्री महत्तरा और वीरमती गणिनी (संवत् 1175)
संवत् 1175 में सिद्धराज जयसिंह के राज्य-काल में मलधारी श्री हेमचन्द्रसूरि ने 'विशेषावश्यक भाष्य' की 37 हजार श्लोक प्रमाण जो 'शिष्यहिता' नाम की विस्तृत और महत्त्वपूर्ण टीका बनाई, उसमें सहयोगी बनने वाले 7 व्यक्तियों में उक्त दो विदुषी श्रमणियों का उल्लेख स्वयं ग्रंथकार ने किया है। 84 टीका के अंत में दोनों साध्वियों का नामोल्लेख करते हुए यह भी लिखा है, कि उन्हें सूरिजी ने अपने शिष्यों के साथ विशेष अध्ययन करने के लिये धारानगरी में भेजा था।585 धारानगरी उस समय उच्चस्तरीय विद्या का केन्द्र थी। इससे स्पष्ट है, कि उस समय साध्वियाँ उच्चकोटि का अध्ययन कर जैनाचार्यों के साथ धर्मचर्चा एवं साहित्य सर्जना में सहयोगी बनती थीं।
5.8.2 आर्यिका श्री मरूदेवी (संवत् 1179)
संवत् 1179 पाटन में महामात्य आशुक के काल में संघ ने इनके लिये यक्षदेव से ताड़पत्र पर 'उत्तराध्ययन सूत्र' लिखवाया। उस समय “चेल्लिका बालमती गणिनी" भी इनके साथ थी।586 584. पं. ब्र. चंदाबाई अभिनंदन ग्रंथ, नाहटाजी का लेख, पृ. 572-63 585. डॉ. ही. बोरदिया, जैनधर्म की प्रमुख साध्वियाँ एवं महिलाएं, पृ. 193 586. जैनशासन नां श्रमणीरत्नों, पृ. 16
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