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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास ज्ञानयज्ञ के साथ विविध तपोकर्म भी आपके जीवन का मुख्य ध्येय रहा। आपने मासक्षमण, 11, 10, 9, 8 उपवास किये। आपकी प्रेरणा से मुम्बई-चेम्बूर में 'साध्वी खातिश्रीजी विद्यापीठ' की स्थापना हुई, जहाँ अनेकों साधु-साध्वी अध्ययन कर जैनधर्म का तलस्पर्शी ज्ञान अर्जित करते हैं। युगप्रधान आचार्य पार्श्वचन्द्रसूरिजी की 500वीं जन्म शताब्दी पर भव्य आयोजन देशभर में करवाने में आपकी मुख्य भूमिका रही। इसके अतिरिक्त और भी शासनप्रभावना के अनेक कार्य आप द्वारा हुए हैं। आपकी 7 शिष्याएँ -भव्यानंदश्रीजी, रम्यानंदश्रीजी, पुनीतकलाश्रीजी, निजानंदश्रीजी, पद्मरेखाश्रीजी, पुनीतकलाश्रीजी और पंकजश्रीजी हैं। तथा 15 प्रशिष्याएँ-संयमरसाश्रीजी, शासनरसाश्रीजी, सिद्धान्तरसाश्रीजी, मितानंदश्रीजी, वीररत्नाश्रीजी, पावनगिराश्रीजी, प्रशांतगिराश्रीजी, यशमालाश्रीजी, यशपूर्णाश्रीजी, पूर्णमालाश्रीजी आदि हैं।579 5.7.13 श्री सुशीलाश्रीजी (संवत् 2007-45) __ आत्मार्थिनी श्री सुशीलाश्रीजी की जन्मभूमि मांडल थी। इच्छा नहीं होने पर भी विवाह हो जाने पर इन्होंने गुप्त रूप से दीक्षा ले ली और मुक्तिश्रीजी की शिष्या बनीं। तप और जप में इनकी विशेष रूचि थी। संवत् 2045 में तप की भावना के साथ स्वर्गवासिनी हुईं। इनकी शिष्या श्री वीरात्माश्रीजी हैं।80 5.7.14 श्री सुमंगलाश्रीजी (संवत् 2008-50) ___ श्री सुनंदाश्रीजी की लघुभगिनी सुमंगलाश्रीजी का जन्म संवत् 1976 में हुआ। 12 वर्ष के विवाहित जीवन में स्वयं अपने हाथों से पति का अन्यत्र विवाह करवाकर इन्होंने संवत् 2008 माघ शुक्ला 5 को श्री सुनन्दाश्रीजी की शिष्या के रूप में दीक्षा अंगीकार की। संस्कृत काव्य और चरित्रों का विशद ज्ञान होने से समुदाय में ये 'पंडित महाराज' के नाम से प्रख्यात हुईं। ये स्वयं तपस्विनी थीं। और शिष्याओं के तप में भी सहायक बनी। संवत् 2050 अमदाबाद में इनका स्वर्गवास हुआ। इनकी एक शिष्या है-सौम्यगुणाश्री।581 5.7.15 श्री सौम्यगुणाश्रीजी (संवत् 2022-39) ये नागलपुर के लालजी हंसराजजी की सुपुत्री थीं, 21 वर्ष की वय में संवत् 2022 माघ कृष्णा 7 के दिन दीक्षा लेकर 17 वर्ष तक कठोर तपस्या की। 8, 9, 10, 12, 16, 21 उपवास, मासक्षमण, चत्तारि अट्ठ तप, सिद्धितप, बीसस्थानक तप से वर्षीतप, छ? से वर्षीतप, वर्षीतप से 40 ओली आदि तप किया। संवत् 2039 में अपने अंतिम चातुर्मास की पूर्व घोषणा कर तपस्या प्रारंभ की, 48 वें उपवास में ऊर्ध्वगति प्राप्त की।582 579. वही, पृ. 826-28 580. वही, पृ. 837 581. वही, पृ. 828-30 582. वही, पृ. 829 484 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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