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________________ श्वेताम्बर-परम्परा की श्रमणियाँ 5.7.9 श्री सुनन्दाश्रीजी (संवत् 1990-2049) राजस्थान रश्मि, गुर्जररत्ना के रूप में प्रख्यात परम विदुषी साध्वी श्री सुनन्दाश्रीजी का जन्म संवत् 1973 में उत्तर गुजरात प्रान्त के उनावा शहर में हुआ। संवत् 1990 फाल्गुन शुक्ला 3 को प्रवर्तिनी श्री खातिश्रीजी के चरणों में दीक्षा अंगीकार की। आगम, न्याय, व्याकरण, ज्योतिष स्वमत-परमत की ज्ञाता के साथ ही आप अप्रमत्त, दूरदर्शी गम्भीर, चिन्तक, व्यवहारकुशल, प्रखर व्याख्यात्री, दृढ़ अनुशासनकर्ती, मितभाषी एवं सौम्यप्रकृति की साध्वीरत्ना थीं। अपनी आत्म-कल्याणकारिणी साधना के साथ आपने समाज को एकसूत्र में जोड़ने के अनेक समन्वयकारी कार्य किये। अनेकों साधक तैयार किये, कइयों को निर्व्यसनी बनाया, जैन-संस्कृति की गरिमा बढ़ाने वाले तथा संस्कार निर्माण करने वाले कई शिविरों का भी आयोजन किया। आपकी प्रेरणा से कच्छ, काठियावाड़, राजस्थान, महाराष्ट्र के अनेक नगरों में मंदिरों का जीर्णोद्धार, नूतन जिनमंदिर, ज्ञानमंदिर, उपाश्रय निर्मित हुए। पचपदरा नूतन जिनमंदिर की जिन भक्ति प्रतिष्ठा महोत्सव में 1 करोड़ 30 लाख की उछामणी आपके सान्निध्य में होना आपके अद्भुत व्यक्तित्व का उदाहरण है। आपके परिवार से 13 दीक्षाएँ हुई हैं। श्री पार्श्वचंद्रगच्छ ने आपके व्यक्तित्व के विविध प्रेरणादायी पहलुओं को उजागर करने हेतु श्री नन्दिताश्रीजी के संपादकत्व में 'दर्द का रिश्ता' नामक पुस्तिका का प्रकाशन किया है। संवत् 2049 जोधपुर में समाधिपूर्वक आपने देह-त्याग किया।76 5.7.10 श्री उद्योतप्रभाश्रीजी (संवत् 2004 से वर्तमान) कच्छ-भुजपुर में जन्म लेकर संवत् 2004 में ये अपनी मासी श्री जंबूश्रीजी की शिष्या बनीं। अपनी वैयावृत्य भावना से ये सभी की प्रियपात्र रहीं। वर्तमान में अपनी 6 शिष्याओं और प्रशिष्याओं के साथ कच्छ में धर्म प्रभावना कर रही हैं।577 5.7.11 श्री बसंतप्रभाजी 'सुतेज' (संवत् 2005-2050) कच्छ की पावनधरा पर मोटी खाखर ग्राम में पिता रवजीभाई और माता वेलबाई के यहाँ जन्म लेकर आपने संवत् 2005 मृगशिर शुक्ला 6 को सुनंदाश्रीजी के पास दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा लेते ही संस्कृत, प्राकृत, तर्कसंग्रह, काव्य आदि में विशिष्ट योग्यता अर्जित की। आपने अनेक गद्य-पद्य पुस्तकों की रचना की है। 'धर्म सौरभ, धर्म झरणां, पुण्य झरणां, सद्बोध झरणां, महावीर जीवन ज्योत आदि पुस्तकें तथा 'सुनंदा-सुतेज पुष्पमाला के 14 पुष्प प्रकाशित हुए हैं। प्रभु-भक्ति एवं प्रसंगोपात अनेक काव्यों की आपने रचना की, जिसमें 'वसंतगीत गुंजन', मन मालानां मणकां' 'सुतेज प्रसंग गीतो, सुतेज भक्ति कुंज' आदि प्रसिद्ध हैं। जैसलमेर तीर्थयात्रा में जाते हुए बाडमेर के निकट संवत् 2050 में अकस्मात् आपका स्वर्गवास हो गया। इनकी शिष्याएँ श्री बिंदुप्रभाश्रीजी, पद्मगीताश्रीजी, मनोजिताश्रीजी, पार्श्वचन्द्राश्रीजी, चारूशीलाश्रीजी तथा नम्रशीलाश्रीजी आदि हैं।578 5.7.12 श्री ॐकारश्रीजी (संवत् 2006 से वर्तमान) संवत् 1990 कच्छ-नागलपुर में जन्मी, एवं संवत् 2006 फाल्गुन शुक्ला 9 को अमदाबाद में दीक्षित हुईं। आपके पिता गोसरभाई देढिया और माता लाखणीबहन थी, श्री खांतिश्री आपकी संसारी बुआ और गुरूणी थी। 576. दर्द का रिश्ता, संपादिका-आर्या कृतिनंदिताश्री, भेरूबाग पार्श्वनाथ जैन तीर्थ, जोधपुर, वि. संवत् 2050 577. 'श्रमणीरत्नो', पृ. 834 578. वही, पृ. 825 483 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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