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________________ श्वेताम्बर-परम्परा की श्रमणियाँ 5.7.2 श्री लक्ष्मीश्री (संवत् 1948-2005) कच्छ नवावास में जन्म और भारापुर के कोरशीभाई के साथ विवाह हुआ, एक ही वर्ष में पतिवियोग हो जाने पर संवत् 1948 फाल्गुन शुक्ला 2 को श्री शिवश्रीजी के पास इन्होंने दीक्षा ग्रहण की। इन्होंने कइयों में धर्म-श्रद्धा जागत करवाई, कइयों को संयम प्रदान किया। इनकी शिष्याएँ-श्री तत्त्वश्रीजी, मुक्तिश्रीजी, अक्षयश्रीजी, त्रिभुवनश्रीजी, हेमश्रीजी, विनोदश्रीजी, जीतश्रीजी, जंबूश्रीजी, सुबोधश्रीजी, न्यायश्रीजी आदि हैं। जंबूश्रीजी की शिष्या-प्रशिष्याएँ- श्री विद्याश्रीजी, उद्योतप्रभाश्रीजी, जयनंदिताश्रीजी, विपुलगिराश्रीजी, सुवर्णलताश्रीजी, अनंतगुणाश्रीजी, भयभंजनाश्रीजी, दिव्यरत्नाश्रीजी, धैर्यप्रज्ञाश्रीजी, विमलयशाश्रीजी तथा विरतियशाश्रीजी आदि हैं। संवत् 2005 नवावास में विशाल शिष्या-प्रशिष्या परिवार की शासन को अपूर्व भेंट देकर ये परलोकवासिनी हुईं।569 5.7.3 श्री लाभश्रीजी (संवत् 1948-स्वर्गस्थ) ये कच्छ के नागलपुर गाँव की थीं, श्री लब्धिश्रीजी के साथ बाल्यवय से ही प्रेम संबंध होने से उनके साथ इन्होंने भी दीक्षा अंगीकार की। ये सरल स्वभावी, आत्मार्थिनी और प्रखर विदुषी थीं। इनकी प्रथम शिष्या श्री गुणश्रीजी उच्चकोटि की विदुषी साध्वी होने से आचार्य सम गरिमा प्राप्त थी, कंठ अति सुरीला था, श्रीमद् राजचन्द्र के प्रति आस्था एवं कानजी स्वामी के संपर्क में आने से अपनी शिष्या अशोकश्रीजी और सुशीलश्रीजी के साथ वे सोनगढ़ में स्थिरवासिनी हो गईं, अन्य शिष्याएँ-पद्मश्रीजी, जयश्रीजी, नेमश्रीजी, कल्याणश्रीजी, भानुश्रीजी, खांतिश्रीजी आदि का विशाल परिवार वटवृक्ष की तरह शोभित है। इनका स्वर्गवास वांकानेर में हुआ।570 5.7.4 श्री चंदनश्रीजी (संवत् 1952-2011) श्री चंदनश्रीजी श्री हेतश्रीजी की शिष्या थीं, ये खंभात की थीं, मांडल में दीक्षित हुईं और अंत में खंभात में स्वर्गवासिनी हुईं। शिष्याएँ-श्री सुमतिश्रीजी, आनंदश्रीजी, शांतिश्रीजी, जिनश्रीजी, जयंतिश्रीजी, देवश्रीजी तथा प्रशिष्याएँ-हरखश्रीजी, तिलकश्रीजी, धनश्रीजी, पद्मश्रीजी, पुन्यश्रीजी, राजश्रीजी, मुक्तिश्रीजी, सुशीलाश्रीजी, वीरात्माश्रीजी, सौभाग्यश्रीजी, शणगारश्रीजी, प्रभाश्रीजी, प्रीतिश्रीजी, दयाश्रीजी, प्रधानश्रीजी, दानश्रीजी, तीवश्रीजी, चंद्रोदयाश्रीजी, महोदयश्रीजी, हर्षप्रभाश्रीजी, चंद्ररेखाश्रीजी, ज्योतिप्रभाश्रीजी आदि हैं।571 5.7.5 महास्थविरा श्री विवेकश्रीजी (संवत् 1959-2041) ____ पार्श्वचन्द्रगच्छ में विवेकश्रीजी महाराज जो 103 वर्ष की आयु पूर्ण कर कालधर्म को प्राप्त हुईं, उन्होंने 21 वर्ष की उम्र में संवत् 1959 माघ शुक्ला 5 को श्री प्रमोदश्रीजी के पास नाना भाडिया (कच्छ) में दीक्षा ली। संवत् 1959 से संवत् 2041 तक 82 वर्ष का सुदीर्घ संयम पाला। आपकी शिष्याओं में आनंदश्रीजी विदुषी साध्वी हुई हैं।572 569. वही, पृ. 55 570. वही, पृ. 59 571. (क) वही, पृ. 64-65 (ख) 'श्रमणीरत्नो', पृ. 831 572. (क) वही, पृ. 61-63 (ख) 'श्रमणीरत्नो', पृ. 834 481 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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