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श्वेताम्बर - परम्परा की श्रमणियाँ
आचार्यश्री की महिमा चारों ओर फैल गई। शास्त्रार्थ का विषय स्त्री मुक्ति को लेकर था। आचार्यश्री को शास्त्रार्थ के लिये प्रेरित करने वाली साध्वी सरस्वती का नाम इतिहास के पृष्ठों पर आज भी सुरक्षित है। 500
5.5.27 विनेयिका गणिनी ( संवत् 1237 )
जसवन्तपुरा परगने का रेवड़ा गाँव, जिला जालोर में सच्चिकादेवी की प्रतिमा पर उल्लिखित अभिलेख में उक्त साध्वी के वैदुष्य का वर्णन है अभिलेख विषय इस प्रकार हैं- उपकेशगच्छ की सत्यशीला और क्षमागुणवती विनेयिका गणिनी ने जनसाधारण के कल्याण के लिये वि. संवत् 1237 फाल्गुन सुदि 2 मंगलवार को जूना (बाड़मेर) में सच्चिका माता की प्रतिमा का निर्माण करवाया और श्री ककुदसूरि ने उसकी प्रतिष्ठा की 161
5.5.28 साध्वी रंगलक्ष्मी (संवत् 1591
वि. संवत् 1591 में उपकेशगच्छीय उपाध्याय रत्नसमुद्र ने अपनी शिष्या रंगलक्ष्मी के लिये 'मयणरेहारास ' की प्रति लिखकर दी। यह प्रति रत्नविजय भंडार डेहला का उपाश्रय अमदाबाद में सुरिक्षत है। 562 5.6 आगमिकगच्छ की श्रमणियाँ (वि. संवत् 13वीं से 17वीं सदी )
13वीं सदी के प्रारंभकाल में चन्द्रगच्छ में शिथिलाचार व उनकी अनागमिक मान्यताओं से खिन्न होकर श्री शीलगुणसूरि ने आगमिक गच्छ की स्थापना की। इस गच्छ में श्री धर्मघोषसूरि महती प्रभावक आचार्य हुए, श्री सर्वानन्दसूरि वचनसिद्ध आचार्य के रूप में विख्यात थे। अभयदेवसूरि परम क्रियानिष्ठ आचार्य थे, आचार्य वज्रसेन आगमों के तलस्पर्शी ज्ञाता विद्वान् थे । नवरसावतारतरंगिणी के विरूद से विभूषित श्री जिनचंद्रसूरि, हेमरत्नसूरि आदि कई उच्चकोटि के विद्वान् मनीषी आचार्य हुए। इस गच्छ में विदुषी, प्रतिलिपिकर्ता के रूप में कुछ साध्वियों के उल्लेख प्राप्त हुए हैं, जो 13वीं से 17वीं सदी तक की हैं। वर्तमान में आगमगच्छ निःशेष प्रायः हो चुका है। 5.6.1 प्रवर्तिनी श्री चंद्रकांति ( 13वीं सदी)
आगमिकगच्छ के जिनप्रभसूरि ने प्रवर्तिनी श्री चंद्रकांति महासाध्वी की विनंती पर 'मल्लि जिन' (19वें तीर्थंकर) अपभ्रंश भाषा में रचा। रचना 13 सदी के अंत की है। 563
5.6.2 साध्वी विवेकलक्ष्मी (संवत् 1626)
उपकेशगच्छीय कक्कसूरि के शिष्य द्वारा संवत् 1528 के लगभग रचित 'कुलध्वजकुमार रास' गाथा 375 की प्रतिलिपि संवत् 1626 माघ शुक्ला 8 को आगमगच्छ की साध्वी जयलक्ष्मी की शिष्या विवेकलक्ष्मी ने की। श्री जिनचारित्रसूरि संग्रह पोथी 81 नं. 2027 तथा जिनदत्त भंडार मुंबई में इसकी प्रति प्राप्त है। 564
560. (क) वही, पृ. 1258-59, (ख) आ. यशश्चन्द्र, मुदित कुमुदचन्द्र नाटक, 46-47, वाराणसी वी. संवत् 2431 561. गोविन्दलाल श्रीमाली, राजस्थान के अभिलेख, पृ. 181, 183 महाराज मानसिंह पुस्तक प्रकाश, जोधपुर, ई. 2000 562. उपकेशगच्छ का इतिहास, डॉ. शिवप्रसाद, 'श्रमण' वर्ष 42 अंक 7-12 सन् 1991, पृ. 117 से उद्धृत
563. ऐति. लेख संग्रह, पृ. 339
564. जै. गु. क. भाग 1, पृ. 150
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