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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास दिन पालनपुर में सेठ वीरजी ओसवाल के पुत्र श्रीकुमार की धर्मपत्नी पद्मश्री से पंचमी कथा की पुस्तक लिखवाकर' साध्वी ललितसुंदरी गणिनी को भेंट की थी । 493 5.4.4 तिलकप्रभा गणिनी ( संवत् 1384 ) आर्यरक्षितसूरि के समय प्रथम महत्तरा साध्वी समयश्री के बाद दो सौ वर्षों के मध्य जिनसुंदरगणिनी के सिवाय अंचलगच्छीय साध्वियों का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता। किंतु संवत् 1384 भाद्रपद शुक्ला 1 शनिवार, खंभात में लिखित 'पर्युषणाकल्प टिप्पनक' की प्रति में 'तिलकप्रभा गणिनी' के उल्लेख के आधार पर यह जाना जा सकता है कि 'समयश्री' के बाद भी एक के बाद एक साध्वी की विद्यमानता की श्रृंखला चली होगी। यह पुष्पिका महं. अजयसिंह ने लिखी है। 494 5.4.5 महत्तरा महिमाश्री ( संवत् 1445 के लगभग ) आप अंचलगच्छ के आचार्य मेरूतुंग के सम्प्रदाय की तेजस्वी साध्वी थी। सूरिजी ने आपको 'महत्तरा' पद से विभूषित किया था। इनका समय संवत् 1445 से 1471 का है। आपने 'उपदेश चिंतामणि अवचूरि' रची 1495 श्री महिम श्री महत्तरा ए, माल्हतंडे थापिया महत्तरा भारि । साह वरसंधि उच्छव कीया ए, माल्हंतडे जंबू नयर मंझारि ॥ - मेरूतुंगसूरि रास 5.4.6 प्रवर्तिनी मेरूलक्ष्मी (संवत् 1445 ) आप भी संवत् 1445 के लगभग हुईं, ऐसा अनुमान है। आपके रचित दो स्तोत्र - 'आदिनाथ स्तवनम् और 'तारंगा मंडन श्री अजितनाथ स्तवन' शीलरत्नसूरि कृत चार स्तोत्रों के साथ उपलब्ध होने से आपको उनके समकालीन माना गया है। आपकी ये दोनों कृतियाँ प्रौढ़ावस्था की ही हैं। अनुक्रम से 7 और 5 श्लोक परिमाण ये कृतियां लघुकाय होने पर भी सरस और प्रवाहपूर्ण है। इसकी भाषा भी प्राञ्जल है। प्रथम स्तोत्र में छंद - वैविध्य से यह जाना जा सकता है कि ये छंद और साहित्य की ज्ञाता पंडिता साध्वी थीं 1496 5.4.7 साध्वी सत्यश्री (संवत् 1566 ) संवत् 1566 आश्विन शुक्ला द्वितीया गुरूवार को श्री हर्षमंडनगणिंद्र शिष्य वाचक हर्षमूर्तिगणि ने कवि देपाल रचित 126 पद्य की 'चंदनबाला चौपाई' आणंद श्रीगणिनी की शिष्या सत्यश्री को लिखकर दी। यह प्रति कर्पटगंज में लिखी है । 497 493. जैन पुस्तक प्रशस्ति संग्रह, प्रशस्ति संख्या 12, 13 494. अंचलगच्छ दिग् दर्शन पृ. 162-163 495. आ. विजय मुनिचन्द्रसूरिजी के पत्र से उल्लिखित 496. (क) दृ. जैन सत्यप्रकाश, वर्ष 9 पृ. 1401 (ख) अंचल. दिग्दर्शन, पृ. 256 497. जै. गु. क. भाग 1, पृ. 135 Jain Education International 458 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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