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________________ श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ 5.3.15.10 श्री ललिता श्रीजी ( स्वर्गवास संवत् 2039 ) जन्म विजापुर, 27 वर्ष की उम्र में वेरावल में दीक्षा ग्रहण की। अति शांत प्रकृति व अप्रमत्त व्यक्तित्व की धनी साध्वी थीं, 8, 16 उपवास, वर्षीतप, वर्धमान तप आदि कई तपस्याएँ की। महेसाणा में संवत् 2039 में इनका स्वर्गवास हुआ। श्री कुमुदश्रीजी, विनयेन्द्रश्रीजी, उर्मिला श्रीजी, और किरणलता श्रीजी ये 4 शिष्याएँ थीं 1468 5.3.15.11 श्री चंद्रप्रभाश्रीजी ( संवत् 1998-2030 ) जन्म संवत् 1980 महेसाणा, पिता श्री कीलाचंदभाई, माता मणिबहन, श्री व्रजलाल भाई महेसाणा के साथ विवाह संबंध होने से पूर्व ही वैराग्य-वासित दोनों पति-पत्नी संयम मार्ग पर आरूढ़ हो गये। संवत् 1998 माघ शुक्ला 13 महेसाणा में श्री प्रमोद श्रीजी के पास ये दीक्षित हुईं। 16 उपवास, दो वर्षीतप, सिद्धितप, वर्धमान तप आदि तपस्याएँ की, इनकी श्री कल्पशीला श्रीजी आदि 3 शिष्याएँ बनीं। बनारस चातुर्मास के पश्चात् संवत् 2030 फाल्गुन कृष्णा 6 को बस दुर्घटना की शिकार बनकर ये महासाध्वी स्वर्गवासिनी हो गई | 469 5.3.15.12 श्री जयप्रभाश्रीजी ( संवत् 2005 - स्वर्गस्थ ) जन्म संवत् 1978 मोरबी, पिता श्री प्राणजीवनदास महेता, माता मणिबहन, विवाह जामनगर निवासी दोशी लालजीभाई से हुआ, संवत् 1996 में एक पुत्री का जन्म हुआ, 18 वर्ष की उम्र में वैधव्य को प्राप्त माता जयाबहन ने पुत्री के साथ संवत् 2005 माघ कृष्णा 6 के दिन महेसाणा में श्री प्रवीणश्रीजी के पास दीक्षा ग्रहण की, पुत्री • शिष्या का नाम पुण्यप्रभाश्री रखा। अध्ययन व वक्तृत्वशक्ति में उल्लेखनीय प्रगति की। गुजरात, सौराष्ट्र मध्यप्रदेश, राजस्थान आदि स्थानों पर विचरण कर प्रतिमा, तीर्थपट, उजमणा प्रभुभक्ति- मंडल, सामायिक मंडल आदि की स्थापना के विविध शासन प्रभावक कार्य किये 1470 5.3.15.13 श्री प्रियदर्शनाश्रीजी ( संवत् 2006-34 ) जन्म संवत् 1998 ज्ञानपंचमी शहर ऊनां में पिता श्री त्रिभोवनदास माता रंभाबहन, दीक्षा संवत् 2006 वैशाख शुक्ला 6 ऊना में, गुरूणी श्री प्रमोद श्रीजी । तप- 8, 16 उपवास, 500 आयंबिल, वर्षीतप 2, वर्धमान तप की 47 ओली आदि तपस्या की। संवत् 2034 पाटण में स्वर्गवासिनी हुईं। 471 5.3.15.14 श्री हर्षप्रभाश्रीजी ( संवत् 2008-46 ) जन्म संवत् 1974 खानपरड़ा (पाटण) ग्राम, माता मैनाबहन, पिता श्री वाडीभाई, विवाह - रानेर निवासी डाह्याभाई से हुआ। वैधव्य के पश्चात् संवत् 2008 कार्तिक कृष्णा 6 को पाटण में अपनी पुत्री के साथ दीक्षा । पुत्री - शिष्या का नाम श्री पवित्रलता श्रीजी था। इनकी गुरूणी श्री जशवंत श्रीजी थीं। संवत् 2046 साबरमती के 468, वही, पृ. 755 469. वही, पृ. 756 470. वही, 757-58 471. वही, पृ. 759 Jain Education International 449 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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