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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 5.3.14.13 श्री रत्नत्रयाश्रीजी (संवत् 2023-40) जन्म कच्छ-मांडवी, पुत्र-श्री अजितचंद्रविजयजी, दो पुत्रियाँ-श्री मंजुलाश्रीजी, वारिषेणाश्रीजी को दीक्षित करने के पश्चात् 65 वर्ष की उम्र में संवत् 2023 मृगशिर शुक्ला 3 राजनगर में पति (प्रशांतविजयजी) के साथ दीक्षा अंगीकार की। जीवन पर्यन्त बीयासणा, 10 अठाई, वर्षीतप, सिद्धितप, 500 आयंबिल, वर्धमान ओली 25 आदि तप से आत्मा को उज्जवल किया। 17 वर्ष संयम आराधना कर संवत् 2040 पालीताणा में स्वर्गवासिनी हुई।456 5.3.14.14 श्री मयणाश्रीजी (संवत् 2057 से वर्तमान) जन्म वढवाण, पिता कालिदासभाई, माता सांकलीबहन, विवाह-राणपुर के श्री व्रजलालभाई। गृहस्थजीवन से ही तप-त्याग व तत्त्वज्ञान आराधना में संलग्न, जैनधर्म का गहन अध्ययन किया। पति के स्वर्गवास के पश्चात् संवत् 2057 में 60 वर्ष की उम्र में हेतश्रीजी के पास दीक्षा अंगीकार की।457 5.3.15 आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज का श्रमणी-समुदाय ____108 ग्रंथों के प्रणेता सागरगच्छ के प्रख्यात आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी के श्रमणी-समुदाय में एक से बढ़कर एक श्रमणियाँ अतीत में हुई हैं जो ज्ञानसंपन्ना, निर्मल चारित्रसंपन्ना तथा तपस्तेज संपन्ना थीं। श्री लाभश्रीजी, दौलतश्रीजी, अमृतश्रीजी जैसी साध्वियाँ संत जीवन का आदर्श थीं, श्री मनोहरश्रीजी का नाम चतुर्थ आरे की श्रमणी के रूप में सम्मान पूर्वक लिया जाता है, वर्तमान में भी श्री जसवंतश्रीजी, इन्द्रश्रीजी, कुसुमश्रीजी, विबोधश्रीजी आदि का नाम विशिष्टता की सूचि में अंकित है। साध्वियों की गुण-गरिमा के प्रति अहोभाव व्यक्त करते हुए आचार्य श्री बुद्धिसागरजी ने कहा है- 'दासोऽहम् सर्वसाधुनाम् साध्वीनां च विशेषतः' अर्थात् मैं सभी साधुओं का दास हूँ और उसमें भी विशेष रूप से साध्वियों का।58 चारित्रसम्पन्न साध्वियों ने अपनी आंतरिक गुण संपत्ति द्वारा जिनशासन के गरिमा-कोष की सदा अभिवृद्धि की है। वर्तमान आचार्य श्री सुबोधसागरजी म. सा. की आज्ञा में 84 साध्वियाँ विचरण कर रही हैं। कतिपय साध्वियों का उल्लेखनीय जीवन-वृत्त यहाँ अंकित है। 5.3.15.1 श्री दौलतश्रीजी (संवत् 1961-स्वर्गस्थ) जन्म संवत् 1941 उदयपुर जिले के आमेट गाँव में, पिता श्री केशरीमलजी चोपड़ा, माता डाहीबहन, दीक्षा संवत् 1961 माघ शुक्ला 5 बीजापुर, गुरूणी श्री रत्नश्रीजी। शिष्याएँ-श्री जयंतिश्रीजी, मंगलाश्रीजी आदि। चार भूजारोड-आमेट में स्वर्गवास हुआ।459 5.3.15.2 प्रवर्तिनी श्री मनोहर श्रीजी (संवत् 1972-2044) शताधिक आयु को प्राप्त श्री मनोहरश्रीजी श्रमणी संघ में विशिष्ट साध्वी रत्न हुई हैं। ये जीवन-पर्यन्त ज्ञान 456. वही, पृ. 738-39 457. वही, पृ. 735 458. वही, पृ. 740 459. वही, पृ. 743-45 446 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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