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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 5.3.12.6 गीतपद्माश्रीजी (संवत् 2018 से वर्तमान) आगम-ग्रंथों में काली आदि महासतियों के तप का वर्णन पढ़कर रोमांच हो उठता है, आज पंचमकाल में भी ऐसी तपाराधिका श्रमणियाँ हुई हैं, जिनके तपोमय जीवन की कथा अद्भुत व आश्चर्यकारक लगती है। उसी कड़ी में एक है - गीतपद्माश्रीजी। इन्होंने 36, 42, 51, 68 उपवास, 20 उपवास बीस बार, एक वर्ष में 20 अट्ठाई, 26 मासखमण, 3 वर्षीतप, श्रेणीतप, भद्रतप, 20 स्थानक की ओली, 375 आयंबिल, 110 अट्टम आदि अनेक दीर्घ व चौंकाने वाली तपस्या की है। वे अपने जीवन में 108 मासखमण करने की भावना रखती हैं। ये श्री चंपकलाल व केसरबहन की सुपुत्री हैं, 17 वर्ष की उम्र में संवत् 2018 पोष कृष्णा 5 के दिन श्री रत्नचूलाश्रीजी की शिष्या के रूप में दीक्षित होकर तपोमार्ग पर अग्रसर हैं।435 5.3.13 आचार्यश्री विजयभक्तिसूरीश्वरजी महाराज के समुदाय की श्रमणियाँ वर्धमान तपोनिधि पूज्यपाद आचार्यश्री विजयभक्तिसूरिजी महाराज तथा आचार्य श्री विजय प्रेमसूरीश्वरजी की आज्ञानुवर्तिनी वर्तमान में 227 श्रमणियाँ हैं, उनमें कुछ का ही परिचय उपलब्ध हुआ है, वह यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। 5.3.13.1 श्री चंपकश्रीजी (संवत् 1983-2046) जन्म कांकरेज के निकट खिमाणागाँव में संवत् 1964, माता जमनाबहन पिता धरमचंद, पति थरा निवासी जगदीशचंद्रजी, वैधव्य के पश्चात् संवत् 1983 मृगशिर शुक्ला 10 राधनपुर में दीक्षा। गुरूणी श्री दर्शनश्रीजी। तप-एक से 17 उपवास क्रमबद्ध, मासक्षमण, चत्तारि, सिद्धितप, वर्ष में 6 अठाई, बीस स्थानक तप, वर्धमान ओली 17, नवपद ओली आदि। इनकी प्रेरणा से अनेक लोगों ने 500 आयंबिल, वर्षीतप आदि किये। पाठशालाएँ भी स्थापित करवाई। संवत् 2046 थरा में अंतिम विदाई। शिष्या-प्रशिष्याएँ-श्री कंचनश्रीजी, श्री अरूणश्रीजी, त्रिलोचनाश्रीजी, मतिपूर्णाश्रीजी, अनिलप्रभाश्रीजी, तत्त्वप्रज्ञाश्रीजी, गीतप्रज्ञाश्रीजी, दिव्यप्रज्ञाश्रीजी, दिव्यदर्शिताश्रीजी, सम्यग्दर्शिताश्रीजी, हितरत्नाश्रीजी, जिनरत्नाश्रीजी, नम्रनंदिताश्रीजी, अक्षयनंदिताश्रीजी, मोक्ष नंदिताश्रीजी, जिनरक्षिताश्रीजी।436 5.3.13.2 श्री जयश्रीजी (संवत् 1993 से पूर्व, स्वर्ग. संवत् 1945) जन्म संवत् 1960 मोटणुंदा, पिता पोपटलाल माता रंभाबहन, पति आरंभडा निवासी मणिभाई। अपनी पुत्री तथा देवर की पुत्री को प्रतिबोधित कर संयम का राही बनाया। पुत्री का नाम लावण्यश्रीजी व देवर की पुत्री का नाम चंद्रकांताश्रीजी रखा। स्थान-स्थान पर जिनमंदिर, उपाश्रय, पाठशाला, आयंबिलशाला आदि द्वारा जिनशासन की महती प्रभावना की। अमदाबाद में गुलाबशांति के नाम से स्वाध्याय मंदिर, आराधना भवन, आयंबिल भवन, मुक्ताबहन आराधना हॉल, जयश्रीजी लावण्यश्रीजी जैन उपाश्रय घाटकोपर, जयश्रीजी कन्या पाठशाला आदि अनेकविध निर्माणात्मक कार्य किये। अंत में, संवत् 1945 में 88 वर्ष कीआयु पूर्ण कर 88 शिष्या-प्रशिष्या परिवार की सन्निधि में अमदाबाद में चिरविदाई ली।437 435. (क) वही, पृ. 671 436. 'श्रमणीरत्नो', पृ. 693-95 437. वही, पृ. 690-92 1440 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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