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________________ अष्टम अध्याय में उपसंहार स्वरूप जैन श्रमणियों की महत्ता, उनका योगदान तथा श्रमणी विषयक शोध के कतिपय पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है। श्रमणियों के वर्णन में प्रामाणिकता, ऐतिहासिकता, क्रमबद्धता का ध्यान रखते हुए उनके द्वारा किये गये धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक अवदानों का मल्यांकन करने का ही लघ प्रयास किया है, अलौकिक घटनाओं के वर्णन को यथासम्भव छोड़ दिया है। जिन श्रमणियों की विस्तृत जानकारी प्राप्त नहीं हुई, उन्हें तालिका में समाविष्ट कर दिया है। शोध-प्रबन्ध के अन्त में संदर्भ-ग्रंथों की सूची दी गई है। इस प्रकार प्रस्तुत शोध-ग्रंथ में स्व गणनानुसार 8205 श्रमणियों का सामान्य विशेष परिचय तथा जिनका परिचय उपलब्ध नहीं हो सका, ऐसी लगभग 10-15 हजार श्रमणियों का नामोल्लेखपूर्वक स्मरण किया है। शेष श्रमणियों को संख्या में परिगणित किया गया है। कृतज्ञता ज्ञापन - इस गुरूत्तर कार्य को पूर्ण करने में मेरे पथ प्रदर्शक डॉ. सागरमल जी जैन पूर्व निदेशक व सचिव पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी तथा वर्तमान निदेशक प्राच्य विद्यापीठ शाजापुर से जो प्रेरणा, प्रोत्साहन एवं निर्देशन प्राप्त हुआ, तदर्थ कृतज्ञता ज्ञापन के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। आपके निर्देशन कौशल से ही यह शोध प्रबन्ध इस रूप में लिखा जाना सम्भव हो सका। आप अत्यन्त व्यस्तता एवं अस्वस्थता के बावजूद भी सदैव तत्परता से मेरी समस्याओं का समाधान कर मुझे प्रोत्साहित करते रहे। श्रमणी विषयक यह इतिहास मेरी कल्पना या मस्तिष्क की कोरी उपज तो हो नहीं सकती, अतः सर्वाशतः कदापि मौलिक भी नहीं है, इसे लिखने में जिन पुस्तकों तथा विद्वान् मनीषियों की रचनाओं, कृतियों का किंचित् भी उपयोग हुआ है, उन सबके प्रति आभार प्रकट करना मैं अपना कर्त्तव्य समझती हूँ। प्रस्तुत लेखन में मुझे प्राच्य विद्यापीठ शाजापुर, महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, जवाहरलाल नेहरू ग्रंथालय दिल्ली, बी. एल. इन्स्टीच्यूट दिल्ली, महावीर जैन लाइब्रेरी चाँदनी चौक, वीर सेवा मन्दिर दरियागंज, कुंदकुंद भारती नई दिल्ली, अध्यात्म साधना केन्द्र छतरपुर, करोलबाग, वीरनगर आदि दिल्ली के प्रसिद्ध ग्रंथालयों से पर्याप्त सहयोग मिला है। डॉ. वीणा जी पश्चिम विहार दिल्ली के अमूल्य सुझावों का भी उपयोग किया है, इन सबके प्रति हृदय से कृतज्ञ हूँ। तपागच्छ के मनस्वी आचार्य विजय मुनिचन्द्रसूरि जी महाराज तथा मुनि श्री भुवनचन्द्रसूरिजी महाराज, (कच्छ गुजरात) ने समय-समय पर मुझे श्रमणी विषयक महत्त्वपूर्ण सामग्री भेजकर उपकृत किया, उनकी निष्काम करूणा मेरे शोध-पथ को आद्यंत आलोकित करती रही, उनके चरणों में मैं सश्रद्ध प्रणत हूँ। भावनगर गुजराती संघ के प्रधान श्री कांतिभाई गोसलिया ने गुजराती स्थानकवासी श्रमणी विषयक सामग्री उपलब्ध करवाने में मुझे पूर्ण सहयोग दिया, उन्हें मैं हृदय से साधुवाद प्रदान करती हूँ। प्रथम अध्याय में अंकित चित्र एवं सप्तम अध्याय का मुद्रण करने में पार्श्व ऑफसेट प्रेस (xliv) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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