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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
तपस्या-3, 8, 5, 16 उपवास, वर्षीतप, बीस स्थानक, ज्ञानपंचमी, वर्धमान तप, नवपदजी, 12 मास मौन में अर्हत् पद का ध्यान, शिष्याएँ - श्री भद्रपूर्णाश्रीजी, कल्पगुणाश्रीजी, संवेगपूर्णाश्रीजी, नयपूर्णाश्रीजी, प्रशिष्या - पद्मगुणाश्रीजी । विहार क्षेत्र - मेवाड़, मालवा, मारवाड़, गुजरात, सौराष्ट्र, महाराष्ट्र आदि ।
5.3.11.27 श्री चंद्रकलाश्रीजी (संवत् 2009 से वर्तमान )
उदयपुर के गन्ना परिवार में समुत्पन्न साध्वी श्री चंद्रकलाश्रीजी नौ वर्ष की उम्र में ही फाल्गुन कृष्णा 11 संवत् 2008 को 'चाणस्मा' में अपनी माता श्री सुदर्शनाश्रीजी के चरणों में दीक्षित हुईं। इनकी जन्मभूमि मेवाड़, दीक्षा भूमि गुजरात एवं कर्मभूमि मालवा रही है। उदयपुर में इनके द्वारा 'श्री विमल सुदर्शन चन्द्र पारमार्थिक जैन ट्रस्ट' की स्थापना हुई। प्राचीन श्री वही पार्श्वनाथजी तीर्थ में होस्पीटल तथा बीस तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि के प्रतीक श्री सम्मेतशिखर तीर्थ का निर्माण, भविष्य में वृद्धाश्रम, छात्रावास आदि की योजना, प्रतापगढ़, मंदसौर में आराधना भवन आदि विविध रचनात्मक कार्य इनकी सशक्त प्रेरणा का प्रतिल हैं। सार्वजनिक मदद रूप में ये प्रतिवर्ष साधर्मिक - भक्ति, मूक-बधिर स्कूल में सहयोग, ड्रेस वितरण थाली सेट वितरण आदि कार्य करवाती हैं, कई महिला मंडल, भक्ति मंडल, स्नात्र मंडल आदि मंडल व संस्थाओं की संस्थापिका हैं। साहित्य के क्षेत्र में भी इनकी अनन्य रूचि है। श्री कल्पसूत्र सुबोधिका टीका का हिंदी अनुवाद, सचित्र भक्तामर, स्वरचित 'आदर्श सरगम' तीन भाग, गंहुली संग्रह, पारस एक नाम अनेक, सुजय चित्र संपुट, महापूजन संग्रह, अंतिम आराधना संग्रह आदि पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। ध्यान, जाप, मौन इनकी साधना के प्रमुख अंग हैं। श्री कीर्तिप्रभाश्रीजी, शीलमाला श्री, रत्नमालाश्री, शीलकान्ताश्री, सुमलयाश्री, चरणकलाश्री, अक्षयरत्नाश्री आदि शिष्याएँ एवं 11 प्रशिष्याओं का विशाल परिवार इनके मार्गदर्शन में साधना पथ पर गतिशील है । दृढ़ संकल्पी मनस्विनी श्री चन्द्रकलाश्रीजी उदयपुर श्रीसंघ द्वारा 'मेवाड़ - मालव ज्योति' की उपाधि से समलंकृता हैं । 412
5.3.11.28 सूर्ययशाश्रीजी ( संवत् 2009 से वर्तमान)
जन्म 1993 आंत्रोली, पिता माणेकलाल, माता मणिबहन ( दीक्षित) महोदया श्रीजी, विमलाश्रीजी ज्येष्ठ भगिनी साध्वियाँ हैं। दीक्षा 2009 चाणस्मा, अवदान - अनेकों को संयम का प्रतिबोध दिया, अमदाबाद वासणा में उपाश्रय, आयंबिलखाता, गृहमंदिर की प्रेरणा, संस्कार शिविरों का आयोजन, कई तीर्थों की यात्रा, दो बार शत्रुंजय की 1 बार गिरनार की 99 यात्रा । तप-अठाई, 16, वर्षीतप, वर्धमान तप की 51 ओली, नवपद ओली आदि की। 113
5.3.11.29 श्री सद्गुणाश्रीजी ( संवत् 2012 से वर्तमान)
राधनपुर में जन्म, माता, चंदनबहन पिता शिवलालभाई, संवत् 2012 वैशाख शुक्ला 10 राधनपुर में दीक्षा, गुरूणी चंद्रोदयाश्रीजी तप - 7, 8, 9 उपवास, वर्धमान तप की 11 ओली, 500 आयंबिल एकांतर, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार, बंगाल में विचरण रहा। 414
411. वही, पृ.648
412. पत्राचार के आधार पर
413. 'श्रमणीरत्नो', पृ. 642 414. वही, पृ.649
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