________________
श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ
5.3.11.3 श्री सुनन्दाश्रीजी ( संवत् 1986-2028 )
जन्म संवत् 1946 वराद गुजरात, दीक्षा संवत् 1986 शेरीसा तीर्थ, गुरूणी श्री चंपाश्रीजी, तप-सिद्धितप, वरसीतप, बीस स्थानक, चारमासी, तीन मासी, दो मासी, डेढ़मासी, नवपद ओली, 11, 10 9 8 6 उपवास, लावाला आचार्य श्री विजयरामसूरीश्वर की मातेश्वरी, चारित्र की सुंदर आराधना की। संवत् 2028 अमदाबाद में कालधर्म को प्राप्त हुईं 1388
5.3.11.4 श्री दर्शनश्रीजी ( संवत् 1987 -2037 )
श्री दर्शन श्रीजी अपनी गंभीरता सरलता, क्षमा, धीरता, गुर्वाज्ञा, वैयावृत्यवृत्ति आदि गुणों के लिये अपने समुदाय में एक प्रख्यात साध्वीरत्न हुई हैं । संसारपक्ष से ये खेड़ा गाँव के श्रीमोतीलालजी व जड़ावबहन की सुपुत्री थीं, संवत् 1962 में जन्म हुआ और 1987 वैशाख कृष्णा 7 के शुभ दिन श्री विमल श्रीजी के पास दीक्षा अंगीकार की । तप के क्षेत्र में इन्होंने नवपद ओली, वर्धमान तप की 70 ओली, सिद्धितप, वर्षीतप बीस स्थानक, चौबीसी, सहस्रकूट आदि दीर्घ तपस्याएँ की हैं। श्री कनकप्रभाश्री और कल्पलता श्रीजी इन दो विदुषी शिष्याओं के परिवार की ये अग्रणी थीं। अमदाबाद में संवत् 2037 में स्वर्गवासिनी हुईं। 389
5.3.11.5 श्री जयंति श्रीजी ( संवत् 1990 से वर्तमान)
जन्म राजनगर संवत् 1970, श्री लालचंद भाई शेठ व माणेकबहन की सुपुत्री, अढ़ाई वर्ष के विवाह संबंध को तोड़कर वैराग्य भाव से संवत् 1990 वैशाख शुक्ला 10 के दिन श्री विमलाश्रीजी के सान्निध्य में दीक्षा अंगीकार की। इनकी प्रेरणा से ललिताश्री और कनकप्रभाश्री इनकी ये दो बहनें भी दीक्षित हुईं। इन्होंने सिद्धितप, अखंड 500 आयंबिल, नवपद, बीस स्थानक, 99 यात्रा, अठाई, समवसरण, सिंहासन, 15 उपवास, सिद्धाचल के छट्ठ अट्टम 108 वर्धमान तप की ओली, चत्तारि अट्ठ, वर्षीतप जैसी उत्कृष्ट तपस्याएँ की हैं। मीठाई, कढ़ाई विगय की त्यागी हैं। कच्छ, सौराष्ट्र, जैसलमेर, मध्यप्रदेश आदि स्थलों पर वित्तरण कर कई लोगों को धर्म से जोड़ा है। श्री ललिताश्रीजी, अभया श्रीजी, रत्नरेखाश्री, जयप्रदाश्री, पूर्णयशाश्री आदि इनकी सुयोग्य शिष्याएँ हैं । 390
5.3.11.6 श्री विमलश्रीजी ( संवत् 1995 से वर्तमान)
जन्म संवत् 1967 उदयपुर, पिता नथमलजी, माता हेतबाई, पति अमृतलालजी चेलावत, दीक्षा संवत् 1995 आषाढ़ कृष्णा 10 उदयपुर, गुरूणी सुमतिश्रीजी, ज्ञान- दशवैकालिक, छः कर्मग्रन्थ, संग्रहणी, क्षेत्रसमास संस्कृत, प्राकृत, हिंदी, गुजराती, तप-अठाई, 24 तीर्थंकर के एकाशन, वर्धमान ओली 49, शिष्या - श्री सुदर्शना श्रीजी 391
388. वही, पृ.645 389. वही, पृ. 638 390. वही. पृ. 639 391. वही, पृ.645
Jain Education International
429
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org