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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास शासन प्रभावना के विविध प्रसंगों में इनका अग्रगण्य स्थान रहता हैं। इनकी 'निर्मल प्रियात्म विनोद' तथा 'जिन गुण मंजरी' पुस्तकें अति लोकप्रिय बनी हैं। अपनी अलौकिक प्रतिभा, गंभीरता, समयज्ञता, उदारता तथा अनोखी व्याख्यान शैली के कारण साध्वी-वृंद में इन्होंने अपना विशिष्ट स्थान बनाया है।382 5.3.10.12 श्री पद्मयशाश्रीजी (संवत् 2009 से वर्तमान) जेतपुर निवासी देवचंदभाई व माता दिवालीबहन के यहाँ संवत् 1990 में इनका जन्म हुआ। भाणवड निवासी प्रभुभाई के साथ विवाह बंधन में बंध जाने पर भी इनकी योगैश्वर्य की साधना स्वीकार करने का कृत संकल्प देख कर अंततः उन्हें दीक्षा की अनुमति देनी पड़ी। संवत् 2009 अषाढ़ शुक्ला 5 धांगध्रा में प्रियंवदाश्रीजी के चरणों दीक्षा अंगीकार की। अध्यात्म ज्ञान के साथ 89,11 उपवास, 20 स्थानक, वर्धमान ओली, नवपद ओली, कर्मसूदन, परदेशीतप, रतनपावड़ी, दीपावली, एकमासी, डेढ़मासी, छोटा-बड़ा पखवासा, दूज, पंचमी, अष्टमी, ग्यारस, चौदश आदि तपाराधनाएँ की। स्थान-स्थान पर ज्ञानमंदिर, ज्ञान भंडार की व्यवस्था, सुघोषा, कल्याण, गुलाब जैन आदि जैन साहित्य में चिंतन प्रधान लेख इनकी ज्ञानपिपासा व साहित्य प्रेम को सूचित करते हैं। अमरेली में इनकी प्रेरणा से 'श्री नेमिनाथ जैन देरासर सर्वतोभद्र प्रासाद' नाम का शिखरबंधी भव्य जिनालय का निर्माण हुआ। इस प्रकार जीवदया और विश्वमैत्री की शुभ भावना से किये गये सर्व मंगलकारी मार्गदर्शन से आज भी संघ इनसे लाभान्वित हो रहा है।383 5.3.10.13 श्री ज्योतिप्रभाश्रीजी (संवत् 2017 से वर्तमान) पाटण निवासी मणिभाई के घर संवत् 1944 में जन्मो बालिका पूर्व संस्कारों से प्रेरित होकर संवत् 2017 मृगशिर शुक्ला 15 के शुभ दिन प्रियंवदाश्रीजी के चरणों में मुंबई में दीक्षित हुई। अपनी प्रखर प्रतिभा एवं ज्ञानरूचि से इन्होंने तत्त्वज्ञान विद्यापीठ पूना की तथा अन्य धार्मिक परीक्षाएँ भी दीं। पंचमी, दशमी, 20 स्थानक, वर्धमान ओली, 96 जिन ओली, नवपद ओली, अठाई, मासक्षमण, सिद्धाचल, छ? अट्ठम, श्रेणीतप आदि तप एवं जप की विविध साधनाएँ इन्होंने संपन्न की हैं। श्री पीयूषकला, श्री कोमलकला, श्री अपूर्वकला, श्री मैत्रीकलाश्रीजी आदि इनका शिष्या-प्रशिष्या का परिवार वर्तमान में रत्नत्रय की आराधना में संलग्न है।384 5.3.10.14 आचार्य श्री विजयमोहनसूरिजी की आज्ञानुवर्तिनीप्रवर्तिनी श्री गुलाबश्रीजी का शिष्या-परिवार 85 जन्म संवत् - क्रम साध्वी नाम 1. श्री शांतिश्रीजी 2. श्री गंभीरश्रीजी 3. श्री प्रभाश्रीजी स्थान दीक्षा संवत् तिथि लीमड़ी - - साणंद 1964 ___ ज्ये. शु. 1 दीक्षा स्थान लीमड़ी अमदाबाद गुरूणी नाम श्री कल्याणश्रीजी श्री कल्याणश्रीजी श्री गंभीरश्रीजी 382. वही, 611-12 383. वही, पृ. 615-16 384. वही, पृ. 617-19 385. जिनशासन नां श्रमणीरत्नों, प्र. 628-37 420 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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