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________________ श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ है, वर्तमान में उनकी आज्ञा में श्री पुष्पलताश्रीजी, श्री पुण्यरेखाश्रीजी का शिष्या - परिवार ज्ञान-साधना, तपाराधना व संयम में अपना विशिष्ट स्थान रखती है, उनमें मात्र तीन श्रमणियों के व्यक्तित्व की उल्लेखनीय जानकारी प्राप्त हुई है, शेष का सामान्य परिचय प्राप्त हुआ है। 5.3.4.1 श्री पुष्पलताश्रीजी ( संवत् 2008 से वर्तमान) आचार्य विजयजितेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज की आज्ञानुवर्तिनी साध्वी श्री पुष्पलताश्रीजी उत्कृष्ट त्यागी एवं संयमी साधिका हैं। संवत् 2008 ज्येष्ठ शुक्ला 14 को सवा वर्ष के पुत्र की ममता का त्याग कर श्री निरंजना श्रीजी के पास दीक्षा अंगीकार की। दीक्षा के पश्चात् 16, 13 उपवास, 500 आयंबिल, तीन मासी तप आदि अनेक प्रकार की तपाराधना इनकी रही, इससे प्रभावित होकर कई शिक्षित युवतियाँ इनके चरणों में समर्पित हुईं। आगम, ध र्मग्रंथ, न्याय व्याकरण, ज्योतिष, कर्मग्रंथ आदि का तलस्पर्शी अध्ययन-अध्यापन कर कइयों में ज्ञानपिपासा जागृत की है। 331 5.3.4.2 श्री पुण्यरेखाश्रीजी ( संवत् 2013 से वर्तमान) लघुवय एवं लघु दीक्षापर्याय में विशाल साध्वीवृंद की संचालिका श्री पुण्यरेखा श्रीजी उच्चकोटि की विदुषी तपस्विनी साध्वी हैं। संवत् 2013 को पादरली ( राजस्थान) में श्री तिलकचंदजी के यहाँ इनका जन्म हुआ। अपने जीवन में अट्ठाई, अट्टम, बीसस्थानक आदि तपाराधना के साथ भोजन में मात्र तीन द्रव्य ग्रहण करती है। नमकीन, मिठाई फल आदि का त्याग, मौन आचरण, इस प्रकार संयम व तप-त्याग को एकमात्र जीवन का लक्ष्य बनाकर चलने वाली इन महासाध्वीजी के पास, वर्तमान में 66 शिष्या - प्रशिष्याएँ आत्माराधना में संलग्न हैं । 332 5.3.4.3 श्री गिर्वाण श्रीजी ( संवत् 2044 से वर्तमान ) भावनगर के मोहनलाल भाई की सुपुत्री साध्वी गिर्वाणश्रीजी जिनशासन की गरिमा में अभिवृद्धि करने वाली गणनीया साध्वियों में एक हैं, इन्होंने अपने परिवार के दो पुत्र, दो पुत्री एवं पति को संयम की प्रेरणा देकर दीक्षित करवाया, स्वयं ने भी श्री पुण्यरेखाश्रीजी के सान्निध्य में संवत् 2044 ज्येष्ठ शुक्ला 10 को पादरली में दीक्षा ग्रहण की। 333 5.3.4.4 श्री पुण्यरेखाश्रीजी का शिष्या परिवार 34 क्रम साध्वी नाम जन्म संवत् स्थान दीक्षा संवत् 1. नंदीरेखाश्रीजी 2033 2. सौम्यरेखाश्रीजी 2034 331. वही, पृ. 357 332. वही, पृ. 357-58 333. वही, पृ. 359 334. वही, पृ. 360-61 Jain Education International खीमेल तिथि ज्ये. वै. शु. 5 377 For Private & Personal Use Only दीक्षा स्थान पादरली नाकोड़ाजी गुरुणी नाम पुण्यरेखाश्रीजी पुण्यरेखाश्रीजी www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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