SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 391
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ भाग्योदया श्री शांतरसाश्री, नयरत्नाश्री, कल्परत्नाश्री, महाप्रज्ञा श्री एवं नीतिप्रज्ञाश्रीजी ये 7 शिष्याएँ हैं। जीतज्ञाश्री किरणप्रज्ञाश्री, सुरत्नाश्री, पूर्णज्ञाश्री, भव्यरत्नाश्री, सोमप्रज्ञाश्री शासनरसा श्री दीप्तिप्रज्ञाश्री ये पौत्र शिष्याएँ हैं। 251 5.3.1.4 रंजनश्री जी (संवत् 1973-2022 ) आप तीर्थ श्रीजी की संसारी पुत्री एवं शिष्या भी थीं। सम्मेदशिखर महातीर्थ का जीर्णोद्धार आपके ही सदुपदेश से इस सदी में (संवत् 2017 ) हुआ। इतिहास में आपका यह अवदान अपूर्व है। जहां साध्वी इतने महान् कार्य की प्रेरणा स्रोत बनी हो । आप जहाँ भी विचरीं, वहां महिला मंडल स्थापित करवाये। 500-600 जितने विशाल श्रमणी - परिवार की संचालिका रंजनाश्रीजी साध्वी समाज के लिये गौरव स्वरूपा थीं। आपके इस महत्कार्य को 'अमृत समीपे ' ग्रन्थ श्री रतिलाल दीपचंद देसाई, श्री सम्मेदशिखर तीर्थ दर्शन ( समेतशिखर जिर्णोद्धार समिति संवत् 2020 ) के आमुख में, तथा ज्ञानांजलि आदि सभी प्रमुख ग्रन्थों के लेखकों ने सराहा है। रंजन श्रीजी की खांति श्रीजी, सरस्वती श्री, रेवतीश्रीजी, मलया श्रीजी 252, प्रवीण श्रीजी 253, मयणाश्रीजी, प्रियंकरा श्रीजी 254, गुणोदया श्री, खीरभद्राश्रीजी, मनोगुप्ताश्रीजी ये 10 शिष्याएँ हैं। सरस्वती श्रीजी की सद्गुणाश्री25 व अजिताश्रीजी हैं। रेवतीश्रीजी की रोहिताश्रीजी, रामगुणाश्रीजी, महागुणाश्री मोक्षगुणा एवं प्रशमपूर्णाजी हैं। रोहिताश्रीजी की अभ्युदयाश्री, रिपुजिता श्री, जयंकराश्री, रक्षितपूर्णा श्री हैं। अभ्युदयाश्रीजी की दो शिष्याएँ हैं - तत्त्वज्ञाश्री, चारूज्ञता श्री । रिपुजिता श्रीजी की सुविदिताश्री हैं। रामगुणाश्रीजी की प्रशांतगुणा, विजेताश्री तथा प्रशांतगुणाश्रीजी की प्रशमपूर्णा श्री व रत्नपूर्णा श्री है । गुणोदया श्री जी की 7 शिष्याएँ मनोरमाश्री, कल्पलताश्रीजी, लक्षिता श्रीजी, सुनयज्ञाश्रीजी धर्मज्ञाश्री, संविज्ञाश्रीजी, कृतज्ञता श्रीजी हैं। मनोरमाश्रीजी की तीन शिष्याएँ हैं 7 आत्मगुणाश्री जी मनोजिता श्रीजी, विनीतागुणाश्रीजी | कल्पलताश्री जी की एक शिष्या तत्त्वविदाश्रीजी । लक्षिताश्रीजी की कल्पपूर्णाश्रीजी व चिदरताश्रीजी । सुनयज्ञाश्रीजी की प्रमितज्ञाश्रीजी, पियुषप्रज्ञाश्रीजी, कर्मज्ञाश्रीजी, रम्यज्ञाश्रीजी, तृप्तिज्ञाश्रीजी, सौम्यज्ञाश्रीजी एवं तत्त्वप्रज्ञाश्रीजी हैं। 256 रेवती श्रीजी की 31 साध्वियाँ हैं, इनमें रेवती श्री, रोहिताश्रीजी ने 100 ओली पूर्ण की हैं, शेष सबकी वर्धमान तप की ओली चालू हैं। रेवतीश्रीजी, जयंकराश्री, शमगुणाश्री, महागुणाश्री, तत्त्वहिताश्री, रक्षितपूर्णा श्री प्रशांतगुणाश्री, विदितपूर्णा श्री (500 आयंबिल आराधिका), पुनीतापूर्णाश्री, प्रणिधानपूर्णा श्री एवं विजेता श्रीजी ने मासक्षमण जैसी उत्कृष्ट तपस्याएँ की हैं। 257 5.3.1.5 श्री मृगेन्द्राश्री जी ( संवत् 1989 - स्वर्गस्थ ) अमदाबाद के श्री पोपटभाई की पुत्री श्री मृगेन्द्राश्रीजी ने 13 वर्ष की उम्र में श्री तिलक श्रीजी के पास दीक्षा ली । वर्तमान तपागच्छीय साध्वियों में ये सर्वश्रेष्ठ आगम अम्यासी मानी जाती हैं। पालीताणां आदि में 200-250 साध्वियों को जीवसमास आदि का गंभीर अध्ययन कराया। तप त्याग में ये स्वयं भी अग्रणी रहीं तथा अपनी शिष्याओं को भी तप की प्रेरणा दी। इन्होंने वीसस्थानक, वर्धमान तप ओली 29, बावन जिनालय, कल्याणक, रत्नपावडी के छट्ट, नवपद ओली एक धान्य की, पोष दशमी, मौन एकादशी, ज्ञानपंचमी आदि 251. वही, पृ. 165-71 252-256. इनका विशेष परिचय अग्रिम पृष्ठों पर देखें 257. श्रमणीरत्नो, पृ. 172-175 Jain Education International 329 For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy