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नयप्रज्ञाश्रीजी
आत्मज्ञाश्रीजी
शीलरत्नाश्रीजी
मोक्षरलाश्रीजी
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास - 1 से 8 तक उपवास, बीस स्थानक, नवपद ओली, वर्षीतप, उपधान, वर्धमान तप
की 55 ओली, पंचमी, ग्यारस, पोष दशमी, पूनम, दीपावली छ8, 99 यात्रा, छ?
करके सात यात्रा, एकांतर 567 आयंबिल - 1 से 4, 8 16 उपवास, पंचमी, दशमी, ग्यारस, वर्षीतप, सिद्धितप, बीस स्थानक,
नवपद ओली, 13 ओली, 99 यात्रा 3 बार, छट्ठ करके 7 यात्रा, कर्मसूदन तप 8, सहस्रकूट 1 से 4, 8 उपवास, नवपद ओली, दशम, पूनम, बीस स्थानक, उपधान, वर्षीतप,
दीपावली तप, 22 ओली - 12.3.5 दो बार 6,8,10,16 मासखमण, चत्तारि०, सिद्धितप, श्रेणितप, उपधान 3,
पंचमी, दशमी, ग्यारस, पूनम, नवपद ओली, वर्धमान 26 ओली, बीस स्थानक,
दीपावली के 7 छ8, 99 यात्रा, एकांतर 500 आयंबिल - 1-4, 6, 8, 16 उपवास, सिद्धितप, नवपद ओली, वर्षीतप, उपधान 2, वर्धमान तप
की 21 ओली, पंचमी दशम, पूनम, दीपावली के छ? - पंचमी, दशम, पूनम, नवपद की ओली, वर्धमान तप की 10 ओली - अठाई 2, 11, 16 उपवास, चत्तारि, उपधान 2, वर्षीतप पंचमी, दशम, पूनम, दूज,
दीपावली तप, बीस स्थानक, वर्धमान तप चालु। अठाई, वर्षीतप, उपधान, मोक्षदंड, चैत्री पूनम, नवपद ओली। वर्षीतप, 16 वर्ष से एकासणा, 30 ओली, सिद्धितप, मेरूतेरस, चत्तारि, सिद्धाचल, स्वस्तिक, मासक्षमण, 16 उपवास, अठाई 3, अष्ट महासिद्धि, चौदहपूर्व, अक्षयनिधि, 6 काय, 9 उपवास, नवपद ओली, वर्धमान तप की 30 ओली, पूनम, 108 अट्टम, पंचरंगी, कर्मसूदन, 20 स्थानक, चौविहार छ8 कर सात यात्रा, 99 यात्रा, कल्याणक तप, इन्द्रियजय, 96 जिन, उपधान 3 सहस्रकूट तथा अन्य अनेक छोटी बड़ी तपस्याएँ की।
समयज्ञाश्रीजी
सिद्धरत्नाश्रीजी श्रुतज्ञाश्रीजी
धर्मप्रज्ञाश्रीजी चित्प्रज्ञाश्रीजी
5.3.1.3 तीर्थश्रीजी (संवत् 1973-2017)
खेड़ा (मातर) के हाईकोर्ट के सुप्रसिद्ध वकील श्री हरिभाई के यहाँ संवत् 1940 में आपका जन्म हुआ। दशा पोरवाड़ वंश के श्री अमृतलाल भाई के साथ विवाह और कुछ ही समय में वैधव्य के बाद तिलक श्री जी की प्रशिष्या बनकर आपने साध्वी-वर्ग में तप की ज्योति प्रज्वलित की। पिछले दो हजार वर्षों में वर्धमानतप की 100 ओली पूर्ण करने वाली आप प्रथम साध्वी थीं, आपके पश्चात् सैंकड़ों साध्वियाँ इस मार्ग पर अग्रसर हुईं। संवत् 2017 अमदाबाद में आप स्वर्गस्थ हुईं। श्री रंजनश्रीजी, प्रमोदश्रीजी, सुरप्रभाश्रीजी आपकी परम विदुषी शिष्याएँ हैं। प्रमोदश्रीजी की निपुणश्रीजी, निरूपमाश्रीजी, हेमंतश्रीजी तीन शिष्याएँ हैं। निपुणाश्रीजी की निर्जराश्री,
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