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________________ 145. 146. 147. 148. 149. 150. 151. 152. 153. 154. 155. 156. 157. 158. 159. 160. 161. 162. 163. 164. 165. 166. 167. 168. 169. 170. श्री विचित्र श्रीजी श्री विशाल श्रीजी श्री वीरश्रीजी श्री अशोक श्रीजी श्री त्रिभुवनश्रीजी श्री रणजीत श्रीजी श्री रंभाश्रीजी श्री विबुधश्रीजी श्री पुष्पा श्रीजी श्री चितरंजन श्रीजी श्री प्रभाश्रीजी श्री प्रकाश श्रीजी श्री राजेन्द्र श्रीजी श्री जिनेन्द्र श्रीजी श्री प्रवीण श्रीजी श्री विजयेन्द्र श्रीजी श्री देवेन्द्रश्रीजी श्री हीराश्रीजी श्री विकास श्रीजी श्री रूपश्रीजी श्री गुणवान श्रीजी श्री माणक श्रीजी श्री सूर्यप्रभाश्रीजी श्री संतोष श्रीजी श्री हंसप्रभाश्रीजी श्री ज्योतिप्रभाश्रीजी 1991 वै. सु. 5 1991 वै. सु. 10 1993 मृ. कृ. 7 1996 वै. शु. 7 1997 ज्ये. शु. 11 1997 ज्ये. शु. 11 1999 माघ कृ. 6 1999 फा. शु. 2 1999 माघ वदि 6 Jain Education International 1999 2001 वै. शु. 6 2003 मृ. शु. 5 2001 वै. शु. 12 2002 ज्ये. शु. 15 2002 आ. शु. 2 2001 आ. शु. 2 2003 म शु. 6 2002 2008 मृ.शु. 5 2009 ज्ये. कृ. 7 2011 म शु. 11 2011 फा. शु. 2 2017 वै. शु. 13 2020 वै. शु. 13 5.2 तपागच्छ एवं उसकी प्राचीन श्रमणियाँ ( 13वीं सदी से संवत् 1791 ) जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास श्री विनयश्रीजी श्री विनयश्रीजी श्री विनयश्रीजी श्री जतनश्रीजी श्री उमंग श्रीजी श्री प्रसन्नश्रीजी श्री रतिश्रीजी 316 श्री वसंत श्रीजी श्री अनुपम श्रीजी श्री जैन श्रीजी श्री विज्ञान श्रीजी श्री प्रकाशश्रीजी श्री उपयोग श्रीजी श्वेताम्बर परम्परा में तपागच्छ का स्थान आज सर्वोपरि है। इस गच्छ की परम्परानुसार बृहद्गच्छीय आचार्य मणिरत्नसूरि के शिष्य जगच्चन्द्रसूरि ने अपने गच्छ में व्याप्त शिथिलाचार के कारण चैत्रगच्छीय आचार्य धनेश्वरसूरि के प्रशिष्य और भुवनचन्द्रसूरि के शिष्य देवभद्रगणि के पास उपसम्पदा ग्रहण की, एवं 12 वर्षों तक निरंतर आयम्बिल तप किया, जिससे प्रभावित होकर आघाटपुर के शासक जैत्रसिंह ने वि. संवत् 1285 में इन्हें For Private & Personal Use Only श्री ज्ञानश्रीजी श्री जतनश्रीजी श्री विचक्षणश्रीजी श्री दत्तश्रीजी श्री यशश्रीजी श्री उमंग श्रीजी श्री लालश्रीजी श्री उमंग श्रीजी श्री हीराश्रीजी श्री विचक्षणश्रीजी श्री वर्धनश्रीजी श्री विचक्षणश्रीजी www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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