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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास शुक्ला 10 को फलौदी में श्री चम्पाश्रीजी से दीक्षा ग्रहण कर व्याकरण काव्य, कोश, छन्द एवं जैन शास्त्रों का गहन अध्ययन किया। उदारता और मिलनसारिता आपके प्रमुख गुण हैं। 209 5.1.2.40 श्री दिव्यगुणाश्रीजी ( संवत् 2029 ) आपका जन्म संवत् 2009 में तथा दीक्षा संवत् 2029 मई 30 को हुई। आपने 'हिंदी कविता में महावीर' विषय पर सन् 1991 में गुजरात विश्वविद्यालय से पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। 210 5. 1.2.41 डॉ. श्री विद्युत्प्रभाश्रीजी (संवत् 2030 से वर्तमान) आपका जन्म संवत् 2020 को मोकलसर में हुआ, आपके पिता का नाम श्री पारसमलजी लुंकड़ और माता का नाम रोहिणीदेवी था। संवत् 2030 आषाढ़ कृष्णा 7 को आपने अपनी माता एवं भ्राता के साथ पालीताणा में दीक्षा ग्रहण की। माता का नाम श्री रत्नमालाश्रीजी एवं भ्राता उपाध्याय मणिप्रभसागरजी हैं। आप विदुषी, कुशल व्याख्यात्री एवं उच्चकोटि की लेखिका हैं। अनगूंज, अधूरा सपना, राही और रास्ता, भीगी खुशबू, प्रीत की रीत, स्वप्नदृष्टा गुरूदेव, विद्युत तरंगे करूणामयी माँ सेठ मोतीशाह आदि कई पुस्तकें आपकी प्रकाशित हैं। सन् 1994 में " जैन दर्शन में द्रव्य का स्वरूप" विषय पर गुजरात युनिवर्सिटी से पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। आप प्रवर्तिनी प्रमोदश्रीजी की शिष्या हैं। बाडमेर में 'कुशलवाटिका' संस्था आपकी प्रेरणा से चल रही है। श्री शासन प्रभाश्रीजी, श्री नीलांजना श्रीजी, श्री प्रज्ञाजनाश्रीजी, श्री दीप्तिप्रज्ञाश्रीजी, श्री नीति प्रज्ञाश्रीजी, श्री विभांजानाश्रीजी, श्री आपकी शिष्याएं हैं | 211 5.1.2.42 डॉ. श्री सुरेखाश्रीजी (संवत् 2032 ) आपका जन्म संवत् 2010 तथा दीक्षा 14 मई संवत् 2032 को हुई। आप प्रवर्तिनी श्री विचक्षणश्रीजी की सुशिष्या हैं। आपने राजस्थान युनिवर्सिटी से 'जैन दर्शन में सम्यक्त्व का स्वरूप' विषय पर महानिबंध लिखकर सन् 1985 में पी. एच. डी. की डिग्री प्राप्त की है। 5.1.2.43 श्री विमलप्रभाश्रीजी ( संवत् 2033 से वर्तमान ) इनका जन्म संवत् 2014 को सिवाना में ललवाणी श्री वंशराजजी के यहाँ हुआ। संवत् 2033 माघ शुक्ला 11 को सिवाना में ही दीक्षा ग्रहण कर श्री चम्पाश्रीजी की शिष्या बनीं। आप जैनधर्म, दर्शन, व्याकरण की अच्छी ज्ञाता हैं। वर्तमान में अपनी 10 शिष्याओं के साथ विचरण कर रही हैं। सूर्यप्रभाश्री और विमलप्रभाश्री ने अपनी स्वर्गीय गुरूवर्या की स्मृति में गढ़सिवाना में चम्पावाड़ी नामक भव्य स्मारक का निर्माण करवाया है। संवत् 2057 में इसका प्रतिष्ठा महोत्सव संपन्न हुआ था । 212 209. खरतरगच्छ का इतिहास, खंड 1, पृ. 418 210. श्री सुभाषजी एडवोकेट, जालना के संग्रह से 211. (क) खरतरगच्छ का इतिहास, खंड 1, पृ. 423 (ख) पत्राचार के माध्यम से 212. संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास, पृ. 419 Jain Education International 306 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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