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________________ श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ 5.1.137 श्री ज्ञानश्रीजी (संवत् 1888) संवत् 1888 पोष कृष्ण 2 को नागोर निवासी छजलानी गोत्रीय श्री वृद्धिचंदजी की पत्नी गुमानी भी पं. सुमतिवर्द्धन की शिष्या बनी एवं 'ज्ञानश्री' नाम दिया गया। 52 5.1.138 प्रवर्तिनी श्री विनयसिद्धिजी श्री अमृतसिद्धिजी (संवत् 1888) संवत् 1888 द्वितीय वैशाख शुक्ला 7 को जिनहर्षसूरि द्वारा प्रवर्तिनी साध्वी श्री विनयसिद्धि की पादुका व अमृतसिद्धि की पादुका प्रतिष्ठित करवाई गई।153 5.1.139 यतिनी इन्द्रध्वजमालाजी (संवत् 1892) संवत् 1892 का लेख है कि श्री जिनउदयसूरि ने इन्द्रध्वजमाला की पादुका धेनमाला की प्रेरणा से प्रतिष्ठित करवाई, उस समय श्री रतनसिंहजी राज्य करते थे। यह पादुका किसी 'यतिनी' की है।154 5.1.140 श्री लक्ष्मीश्रीजी (संवत् 1894) संवत् 1894 आसाढ़ शुक्ला 10 को पाली निवासी खूबचन्दजी धारीवाल के पुत्र रूघजी की धर्मपत्नी 'लाछां ने सिद्धश्रीजी के उपदेश से वैराग्य-वासित हृदय से 'जिनमहेन्द्रसूरि' के मुखारविन्द से जिनदीक्षा ग्रहण की। उनका नाम 'लक्ष्मीश्री' रखा गया।55 | 5.1.141 श्री बुद्धिजी, कस्तूरांजी (संवत् 1899) बीकानेर के ही आदिनाथ मंदिर में संवत् 1899 में साध्वी श्री बुद्धिजी की व साध्वी कस्तूरांजी की पादुका विक्रमपुर में प्रतिष्ठित होने का उल्लेख है। 5.1.142 श्री बख्तावरजी (संवत् 1899) संवत् 1899 में विक्रमपुर में ही साध्वी बख्तावरजी की पादुका होने की भी सूचना प्राप्त होती है। 5.1.143 आर्या जसुजी, अमरांजी, उमेदांजी (संवत् 1899) संवत् 1899 में अमरसोत शाखा की आर्या श्री जसुजी की पादुका उनकी पौत्री शिष्या साध्वी उमा द्वारा 152. वही, पृ. 122 153. 'नाहटा' बीकानेर-जैन लेख संग्रह, ले. सं. 2079 154. वही, ले. सं. 2315, पृ. 324 155. वही, पृ. 122 156. वही, ले. सं. 2026 157. वही. ले. सं. 2027 293 For Private Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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