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श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ 5.1.124 श्री कनकमाला, किसनमाला व रूपमाला (संवत् 1797)
संवत् 1797 प्रथम आसाढ़ शुक्ला 5 को जैसलमेर में भट्टारक श्री जिनकीर्तिसूरि द्वारा प्रदत्त तीन श्रमणी दीक्षाओं का उल्लेख है-साध्वी कनकमाला, किसनमाला एवं रूपमाला।139 5.1.125 श्री विवेकसिद्धि (18वीं शती)
श्री विनयचंद्रसूरि रचित 'विनयांकित महाकाव्य' (रचना संवत् 1266-1345 के मध्य) जो भगवान मल्लिनाथ पर आठ सर्गों में लिखा गया है, इसकी हस्तलिखित प्रति में साध्वी विवेकसिद्धि का उल्लेख है।140 5.1.126 गणिनी अमरश्री (18वीं सदी)
खरतरगच्छीय कनककवि कृत 'वलकलचीर ऋषि राजवेलि' (रचना संवत् 1582-1612 के मध्य) की प्रतिलिपि मंडपगढ़ में गणिनी अमरश्री ने श्राविका कीकी के लिये की। इसकी प्रति राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर में है। 5.1.127 श्री सत्यलक्ष्मी (18वीं सदी)
ऋषि रविचंद्र ने खरतरगच्छ के धर्मसमुद्रगणी रचित 'जयसेन चोपाई' साध्वी सत्यलक्ष्मी को लिखकर पठनार्थ दी। यह प्रति ‘संघ हस्तक नो उपाश्रय मां नो भंडार, मांगरोल में है। 42 5.1.128 गणिनी विशालशोभा (18वीं सदी)
पंडितउदय रत्नगणि के शिष्य ने 'जयसेन चौपाई' की प्रतिलिपि कर गणिनी विशालशोभा की शिष्या लालबाई को पठनार्थ दी। प्रति मोटा संघ नो भंडार, राजकोट में है। 43
5.1.129 श्री मलूकोजी (संवत् 1803)
उपाध्याय समयसुंदर कृत 'प्रियमेलकरास' की प्रतिलिपि संवत् 1803 ज्येष्ठ कृष्णा 2 को पूर्णकर साध्वी मलूको जी को पठनार्थ दी गई। यह प्रति सर्वज्ञ महावीर जैन पुस्तक भंडार, धोरांजी (गुजरात) में है। 44
5.1.130 श्री रूपसीजी (संवत् 1804)
खरतरगच्छ के जिनराजसूरि की 'शालिभद्रधन्नारास' (रचना संवत् 1678) की प्रतिलिपि संवेग कीसनदास 139. ख. दी. नं. सूची, पृ. 124 140. (क) जैन साहित्य का बृ. इति., खंड 3, पृ. 486; (ख) वही, खंड 6 पृ. 110 141. जै. गु. क., भाग 1, पृ. 504 142. जै. गु. क., भाग 1, पृ. 243 143. जै. गु. क., भाग 1, पृ. 243 144. जै. गु. क., भाग 2, पृ. 330
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