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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 5.1.75 साध्वी कील्हू (संवत् 1382) आप पाल्हणपुर निवासी माल्हू गोत्रीय रूद्रपाल शाह और धारला की पुत्री थी। संवत् 1382 में अपने भ्राता 'समरिग' के साथ श्री जिनकुशलसूरि के पास भीमपल्ली में दीक्षा अंगीकार की। 'समरिग' 'मुनि सोमप्रभ' के नाम से विख्यात हुए, संवत् 1415 में खम्भात शहर में आचार्य पद पर स्थापित होने पर ये 'जिनोदयसूरि' नाम से प्रसिद्ध हुए। श्री जिनकुशलसूरि ने संवत् 1382 वैशाख सुदि 5 को “विनयप्रभ' 'मतिप्रभ', सोमप्रभ', 'हरिप्रभ', 'ललितप्रभ' इन 5 मुनि एवं 2 क्षुल्लिकाओं को दीक्षा दी थी। संभव है उन्हीं में से एक का नाम 'कोल्हू' हो। दीक्षा के बाद क्षुल्लिकाओं का क्या नाम रखा, इसका उल्लेख नहीं है। 5.1.76 कुछ क्षुल्लिका दीक्षाएँ (संवत् 1384) श्री जिनकुशलसूरि द्वारा संवत् 1384 वैशाख शुक्ला 5 के दिन दो क्षुल्लिकाओं को दीक्षा देने का उल्लेख प्राप्त होता है। क्षुल्लिकाओं के नाम आदि की जानकारी उपलब्ध नहीं है। इनके पश्चात् संवत् 1385 फाल्गुन शुक्ला 4 को देवराजपुर (देवरावर) में भी कुछ क्षुल्लिकाओं के दीक्षित होने के उल्लेख उपलब्ध होते हैं।" 5.1.77 श्री कुलधर्मा, विनयधर्मा, शीलधर्मा (संवत् 1386) संवत् 1386 माघ शुक्ला 5 को देवराजपुर (देरावर) में श्री जिनकुशलसूरिजी के द्वारा उक्त तीनों की दीक्षाएँ हुई थीं। 5.1.78 श्री महाश्री, कनकश्री (संवत् 1390) इन दोनों ने संवत् 1390 ज्येष्ठ शुक्ला 6 सोमवार के शुभ दिन क्षुल्लिका दीक्षा अंगीकार की थी। ये दीक्षाएँ दादा गुरूदेव श्री जिनकुशलसूरि जी के स्वर्गारोहण के पश्चात् श्री जिनपद्मसूरिजी के मुखारविंद से हुईं। 5.1.79 प्रबुद्धसमृद्धि गणिनी (14वीं सदी) ___14वीं सदी के प्रारंभ में विद्यमान खरतरगच्छ के जिनेश्वरसूरि के शिष्य वाचक सर्वराजगणि रचित 'गणधरसार्द्धशतक' की संक्षिप्त व्याख्या उक्त साध्वीजी की अभ्यर्थना से की गई थी। 5.1.80 श्री मतिसुन्दरी, हर्षसुन्दरी (संवत् 1431) श्री मतिसुंदरी भूतपूर्व देश सचिव माल्हू शाखीय डुंगरसिंह की पुत्री थी, इनका गृहस्थ नाम 'उमा' था। इनकी 89. (क) खरतर. पट्टावली पृ. 12 (ख) श्री अगरचंद नाहटा, ऐति. लेख संग्रह, पृ. 502 90. खर. दीक्षा नंदी सूची, पृ. 19 91. ख. बृ. गु., पृ. 80 92. ख. बृ. गु., पृ. 82 93. ख. बृ. गु., पृ. 85-86 94. 'नाहटा' ऐति. लेख संग्रह, पृ. 339 282 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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