SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिगम्बर परम्परा की श्रमणियाँ तत्वार्थ सूत्र, सर्वार्थसिद्धि समयसार, द्रव्यसंग्रह, प्रवचनसार आदि गूढ़ ग्रंथों का सूक्ष्मरीति से अध्ययन किया, आपकी प्रवचन शैली सहज हृदय गम्य है, अनेक भव्य जीव आपके सदुपदेश से स्वाध्यायप्रेमी व व्रत सम्पन्न बने हैं।220 4.9.69 क्षुल्लिका आदिमतीजी ( संवत् 2015 ) आप राजमन्नारगुडी (मद्रास) के श्री वर्धमानजी की कन्या है आपके पति अपाड़मुदलिया वैदारवीया (तमिलनाडु) निवासी थे, उनके स्वर्गवास के बाद आप गृहभार से मुक्त हो गईं, भाइयों की अनुमति लेकर आचार्य महावीरकीर्ति जी से नागौर में सन् 1958 में दीक्षा ली अनेक स्थानों पर वर्षावास करती हुई आप जन-जन के हृदय में धर्म का दीप प्रज्वलित कर रही हैं। 221 4.9.70 क्षुल्लिका चन्द्रमतीजी अलवर (राजस्थान) के श्री सरदारसिंह जी आपके पिता थे, 8 वर्ष की उम्र में आपका विवाह हुआ, हाथ की मेंहदी भी नहीं उतर पाई थी कि वैधव्यता का सिक्का लग गया। आचार्य शांतिसागर जी महाराज के प्रभाव से आपने अपने जीवन को पवित्र बनाना प्रारंभ किया, श्राविकाओं को धर्मोपदेश, शिक्षा देकर आपने उन्हें धर्म श्रद्धावान बनाया, वैराग्य तीव्र होने पर सोनगिर में आचार्य महावीरकीर्ति जी से क्षुल्लिका दीक्षा अंगीकार कर ली। आपने अपने जीवन में स्त्रियों को शिक्षित करने के प्रेरक कार्य किये। साथ ही आपकी सत्प्रेरणा से श्री वासुपूज्य भगवान के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और निर्वाण स्थान पर 70 फुट ऊँचा मानस्तम्भ, 24 टोंक, भगवान वासुपूज्य की 25 फुट ऊँची प्रतिमा, स्वाध्याय भवन आदि लोकमंगलकारी कार्य हो रहे हैं। 222 4.9.71 क्षुल्लिका श्री जिनमतीजी (संवत् 2022 ) मृगशिर कृष्णा 5 संवत् 1979 को सिनोदिया ( जयपुर ) ग्राम में जन्मी छिगनीबाई 13 वर्ष की उम्र में श्री मांगीलाल जी पाटनी कांकरा निवासी के यहां ब्याही गई, शादी के नौ वर्ष पश्चात् पति का देहान्त हो गया, संसार का कर्त्तव्य दोनों पुत्रियों का विवाह करने के पश्चात् आपने साधना का मार्ग स्वीकार किया। क्रमशः पांचवी और सातवीं प्रतिमा ग्रहण करते हुए आपने दिल्ली में आ. देशभूषण जी म. से मृगशिर शु. 2 संवत् 2022 में क्षुल्लिका दीक्षा अंगीकार कर ली, बड़े कठोर संघर्ष करने पड़े आपको दीक्षा के लिये, किन्तु अन्ततः आप विजयी हुईं। दीक्षा के पश्चात् आप भारत के कोने-कोने में पैदल भ्रमण कर धर्म प्रचार कर रही हैं, आप जहां भी गयीं, वहीं विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान जाप, मंडल विधान आदि के आयोजन करवाये, जयपुर में साधुओं के लिये शुद्ध निर्दोष औषधि का निर्माण कार्य आपके प्रयासों से चलता है आपके उपदेशों का अन्य धर्मावलम्बियों पर काफी अच्छा प्रभाव पड़ता है, कई क्षत्रियों ने रात्रिभोजन, मांस, मदिरा का त्याग एवं आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत पालन का नियम किया है, आपके प्रवचन में छोटे-छोटे बच्चे भी सैंकडों की संख्या में पहुंचते हैं, एवं व्रत नियम अंगीकार करते हैं । 223 220. दि. जै. सा., पृ. 458 221. दि. जै. सा., पृ. 364 222. दि. जै. सा., पृ. 365 223. दि. जै. सा., पृ. 334 Jain Education International 251 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy