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दिगम्बर परम्परा की श्रमणियाँ
अनुदान : अपनी तर्कप्रवण प्रज्ञा, सूक्ष्म बुद्धि से आपने कई ग्रंथ लिखे, एवं कइयों का अनुवाद किया। परम अध्यात्म तरंगिणी, सागार धर्मामृत, अनगार धर्मामृत, नय विवक्षा, राजवार्तिक, आचारसार आदि लगभग 20 ग्रंथ उच्चकोटि के प्रकाश में आये हैं। आपका ज्योतिष ज्ञान, मंत्र, तंत्र, यंत्रों का ज्ञान एवं प्रभावी प्रवचनशैली सभी को अभिभूत कर देती है । आसाम, बंगाल, बिहार, नागालैंड आदि प्रान्तों में अपूर्व धर्मप्रभावना करने का श्रेय आपको ही है। आपकी प्रेरणा से शिखरजी में मध्यलोक की भव्य रचना हुई, इसमें 458 अकृत्रिम जिनमंदिर हैं। मध्यलोक की संपूर्ण रचना शास्त्रोक्त रीति से दर्शाई है। आप शान्त व निर्मल स्वभाव की हैं। सैंकड़ों लोग आपसे ब्रह्मचर्य व्रत एवं प्रतिमा व्रत लेकर चारित्र मार्ग पर दृढ़ बने हैं। आपके संघ में श्री सुप्रभा माताजी, श्री आनंदमती माताजी आदि साध्वियाँ हैं। 63
4.9.12 आर्यिका श्री सिद्धमतीजी ( संवत् 2014 - वर्तमान)
आपका जन्म परवार जाति में पिता श्री मन्नुलालजी भोपाल निवासी के यहां संवत् 1990 में हुआ। आपने 'आरा' महिलाश्रम में रहकर लौकिक एवं धार्मिक अध्ययन किया। विवाह के छह महीने बाद ही पति का वियोग आपके लिये शोक का कारण बना, किंतु धर्मचर्चा, जिनेन्द्रभक्ति में जब मन रम गया तो आपने बड़वा में फाल्गुन शु. 10 सं. 2013 को क्षुल्लिका दीक्षा ली एवं मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र पर पोष कृ. 2 संवत् 2014 को आचार्य विमलसागरजी
आर्यिका दीक्षा ग्रहण कर ली। आप अत्यंत विदुषी सुयोग्य साध्वी हैं, इन्दौर, ईसरी आदि जिन-जिन क्षेत्रों में आपने चातुर्मास किये वहाँ की जनता आपसे बड़ी प्रभावित हुई। आपने घी, तेल दही आदि रसों का त्याग किया हुआ है। आपका तपोपूत जीवन वर्तमान युग में प्रेरणादायक है। 164
4.9.13 आर्यिका श्री चन्द्रमतीजी ( संवत् 2014 )
आपने वि. संवत् 1956 में सतारा जिले के 'गिरवी' ग्राम निवासी श्री फूलचन्द्रजी को अपना पिता कहलाने का सौभाग्य प्रदान किया सोलापुर के श्री हीरालालजी से आप विवाह बंधन में बंधी, किंतु आठ ही वर्ष में यह बंधन टूट गया तत्पश्चात् कालिञ्जा आश्रम में धार्मिक शिक्षा का गहन अध्ययन एवं अध्यापन कार्य किया, आपकी एक मात्र सुपुत्री श्री विद्युल्लताजी प्रधानाध्यापिका एवं अधिष्ठात्री के रूप में सप्तम प्रतिमा तक व्रतों को ग्रहण कर सोलापुर आश्रम में सेवा दे रही हैं। आपने संवत् 2013 में आचार्य वीरसागरजी से जयपुर खानियां में क्षुल्लिका दीक्षा एवं संवत् 2014 में चैत्र कृ. 1 को आचार्य श्री शिवसागरजी से आर्यिका दीक्षा ग्रहण की। आप तपस्या के द्वारा आत्मा को कर्ममल से रहित करती हुई मुक्ति मार्ग पर अग्रसर हैं। 165
4.9.13. आर्यिका श्री शांतिमतीजी ( - वर्तमान)
आप नसीराबाद के श्री रोडमलजी खंडेलवाल की कन्या थीं, विवाह चम्ब गोत्र में हुआ, पति हीरे-जवाहरात के व्यवसायी हैं। आर्यिका सुपार्श्वमती जी से प्रभावित होकर क्षुल्लिका दीक्षा ली, बाद में नागौर में आचार्य वीरसागर जी से आर्यिका दीक्षा ग्रहण करली। आप संयम और विवेकशीला हैं, देश व समाज को सन्मार्ग पर चलने का सद्बोध देती रहती हैं, आपने दूध के अलावा 5 रसों का त्याग किया हुआ है। 66
163. दिगम्बर जैन साधु, पृ. 152 164. दि. जै. सा., पृ. 403
166. दि. जै. सा., पृ. 157
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165. दि. जै. सा. पृ. 212
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