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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास में आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के पट्टाधीश आचार्य श्री वीरसागरजी महाराज से आर्यिका दीक्षा ग्रहण की। दिगम्बर जैन समाज में आप इस शताब्दी की सर्वप्रथम बालब्रह्मचारिणी आर्यिका है।
अनुदान : आपने संस्कृत एवं प्राकृत भाषा के अनेक ग्रंथों की टीकाएँ एवं मौलिक साहित्य लिखा है। इससे पूर्व ग्रंथ-भंडारों में जितना भी साहित्य उपलब्ध होता था वह आचार्यों, भट्टारकों एवं विद्वानों द्वारा लिखित प्राप्त होता था, आर्यिकाओं द्वारा लिखित साहित्य सर्वप्रथम आपका ही है। आपने प्राचीन ग्रंथ मूलाचार, नियमसार पर संस्कृत में तथा अष्टसहस्री, कातंत्रव्याकरण, आदि पर हिंदी टीकाएँ सरल सुबोध शैली में नाटक, कथाएँ तथा बालोपयोगी साहित्यिक ग्रन्थ आदि कुल 150 के लगभग ग्रंथों का प्रणयन किया है।
साहित्य सेवा के अतिरिक्त आपकी प्रेरणा से अनेक ऐतिहासिक महत्त्व के कार्य सम्पन्न हुए हैं, हो रहे हैं। हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप रचना, आचार्य श्री वीरसागर संस्कृत विद्यापीठ, सम्यग्ज्ञान हिंदी पत्रिका, ऋषभदेशना आदि लोकप्रिय पत्रिका, समग्र भारत में जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति का प्रवर्तन, अ. भा. दि. जैन महिला संगठन की लगभग 239 ईकाइयाँ आपकी प्रेरणा से स्थापित सृजित व संचालित है।
आपके अभिनंदन स्वरूप एक विशालकाय ग्रंथ सन् 1992 में आपको समर्पित किया गया था, जो "गणिनी आर्यिका रत्न श्री ज्ञानमती अभिवंदन ग्रंथ" के नाम से सुआख्यात है। यह ग्रंथ दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान हस्तिनापुर से प्रकाशित है।
4.9.10 आर्यिका श्री रत्नमतीजी (संवत् 2013-स्वर्गवास)
'नारी गुणवती धत्ते स्त्रीसृष्टेरग्रिमं पदं' उक्ति को चरितार्थ कर आपने फलभरित वटवृक्ष के समान अनेक रत्नत्रय संपन्न साध्वी रत्नों को प्रसूत किया है जिसमें गणिनी आर्यिका ज्ञानमतीजी विश्रुत आर्यिका रत्न है। श्री अमयमती माताजी आपकी सुपुत्री हैं। इसके अतिरिक्त आपके सुपुत्र ब्र. रवीन्द्रकुमार जैन एवं सुपुत्रियां ब्र. कु. मालती शास्त्री, ब्र. कु. माधुरी शास्त्री भी त्याग व वैदुष्य से संपन्न मुमुक्षु आत्माएं हैं। इस प्रकार आपका पूरा परिवार जैनधर्म, साहित्य एवं संस्कृति के लिये सर्वात्मना समर्पित है। आपने आचार्य धर्मसागरजी महाराज से 57 वर्ष की उम्र में आर्यिका दीक्षा अंगीकार की तथा ज्ञानमतीजी की माता होकर भी उनसे शिक्षा दीक्षा ग्रहण कर उन्हें गुरू का सम्मान व विनय प्रदान किया। आपके सम्मान में 'आर्यिका रत्नमती अभिनंदन ग्रंथ' दिगंबर समाज द्वारा समर्पित किया गया विद्वद्भोग्य ग्रंथ है।
4.9.11 गणिनी श्री सुपार्श्वमती माताजी (संवत् 2014-वर्तमान)
अपने तप एवं वैदुष्य से विद्वत्संसार में समादरणीया माताजी नागोर जिले के मैनसर गांव के सद्गृहस्थ श्री हरकचंद जी चूड़ीवाल के घर संवत् 1985 में जन्मी। विवाह के तीन मास बाद ही वैधव्य ने इनकी मानस लहरियों पर वैराग्य की ज्योति प्रज्वलित की। संवत् 2014 में आचार्य वीरसागरजी द्वारा आर्यिका दीक्षा ग्रहण की।162
161. संपादक, जैन डॉ. पन्नालाल, आर्यिका रत्नमती अभिनंदन ग्रंथ, भा. दि. जैन महासभा, डोभापुर, ई. 1983 162. दिगम्बर जैन साधु, पृ. 152
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