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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
4.7.12 नाट्टिग भट्टारर (8वीं से 11वीं सदी)
शिलालेख नं. 61 में महासती 'नालकुर-क्कुरत्तिगळ' की शिष्या 'नाट्टिग-भट्टारर' की प्रेरणा से पवित्र प्रतिमा के निर्माण होने का उल्लेख है। 4.7.13 मिळालुर-क्कुरत्तिगळ (8वीं से 11वीं सदी)
कुलुगुमलै ग्राम के शिलालेख नं. 73 में साध्वी पीरूर-क्कुरत्तियार (पैरूर की गुरूणी आचार्या) जो करैकाननाडू के पुत्र पिडान कुडी की मिंगाइकुमान की पुत्री थी; की शिष्या 'मिळालुर-क्कुरत्तिगल' द्वारा मूर्ति बनवाने का उल्लेख है।102
4.7.14 विसइया-क्कुरत्तियार (8वीं से 11वीं सदी)
शिलालेख नं. 54 में बेनबइक्कुडि की साध्वी तक्कनसंग क्कुरत्तिगल (ज्मबबंद.दहं ज्ञानतंजपहंस) की शिष्या सिरि विसइया (श्री विजया) की प्रेरणा से जिन प्रतिमा का निर्माण संदनकट्टि के श्रेयार्थ करने का उल्लेख है। यह एक स्वतन्त्र संघ की आचार्या, अधिष्ठात्री अथवा अध्यक्षा थी। 4.7.15 पिक्कइ कुरत्ति (8वीं से 11वीं सदी)
शिलालेख नं. 51 में उल्लेख है कि इडैक्कलनंदु के सिरूपोलल की साध्वी पिक्कइकुरत्ति की प्रेरणा से इस जिनप्रतिमा का निर्माण हुआ।
4.7.16 लेनेक्कुरत्तु कुरत्तिगल (8वीं से 11वीं सदी)
यह तीर्थ भट्टार की शिष्या थी, इसकी प्रेरणा से जिनप्रतिमा निर्मापित होने का संदर्भ शिलालेख नं. 64 में प्राप्त होता है। इस लेख से यह भी अर्थ निकल सकता है कि उक्त कुरत्तिगल 'लेनेक्कुरम' की साध्वी थी।105 4.7.17 अदिट्टनेमि भट्टारक स्नातक कुरत्तियार (8वीं से 11वीं सदी)
शिलालेख नं. 66 में उक्त साध्वी का उल्लेख है यह ममेइ-क्कुरत्तिगल की शिष्या थी, इनकी प्रेरणा से जिन-प्रतिमा निर्मित हुई थी।
101. वही, पृ. 185 102. वही, पृ. 191 103. Jain Literature in Tamil, A.K.Charkavarthy, Page 181 104. वही, पृ. 180 105. वही, पृ. 186 106, वही, पृ. 187
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