________________
4.6.53 नागवे ( 15वीं सदी)
गुड्डगुडि ( धारवाड़, मैसूर) में कन्नड़ भाषा में प्राप्त अभिलेख सरस्त (सूरस्त) गण के किसी आचार्य की शिष्या 'नागवे' से संबंधित है, उसके समाधिमरण पर निर्मित स्मारक पर यह लेख उट्टङ्कित है। 7 4.7 तमिलनाडु प्रांत की श्रमणियाँ ( 8वीं से 11वीं सदी)
4.7.1 एनादि कुट्टनन साटी ( 10वीं सदी से पूर्व )
लेख नं 116 में ईसा की 10वीं सदी से पूर्व का उल्लेख है कि कव्व्ठुगुमलै ग्राम के शिलालेख में उट्टङ्कि. त है कि वहां की तीर्थंकर प्रतिमा 'एनादी कुट्टनन साटी' की प्रेरणा से बनवाई गई थी। यह तिरूमलै की साध्वी कुरट्टिगळ' की शिष्या थी। 88
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
4.7.2 एनादि मागणक्कुरत्ति ( 10वीं सदी के पूर्व )
लेख नं. 150 ग्राम कुष्ठुगुमले की प्रतिमा एनादि मागणक्कुरत्ति साध्वी की प्रेरणा से बनी थी। ̈
4.7.3 कुरत्तिगळ ( 10वीं सदी)
लेख संख्या 118 में तिरूप्परूत्ति की साध्वी पट्टिनी भट्टारा ( प्रमुख स्त्री भट्टारिका) की शिष्या कुरत्तिगळ की प्रेरणा से 'कुठुगुमलै' ग्राम में एक प्रतिमा निर्मित होने का उल्लेख है।
4.7.4 तिरूविलै कुरत्ति ( 8वीं से 11वीं सदी)
ये तिरूविलै के चतुर्विध संघ की अधिष्ठाता आचार्य भट्टारिका थीं। दिगम्बर और श्वेताम्बर धर्म-संघों की मान्यता और स्थिति के विपरीत इन महाश्रमणी की भट्टारक, आचार्य और उपाध्याय के पद पर प्रतिष्ठा क्रांतिकारी और आश्चर्यजनक ही है । "
4.7.5 अरिष्टनेमि कुरत्तिगळ ( 8वीं से 11वीं सदी)
ये मम्मइ-कुरतिगल की शिष्या थीं। इन्होंने प्रतिमा निर्माण में प्रेरणा दी। लेख सं. 66 है। 2 जैन इन्स्क्रिप्शन्स में ग्राम 'कुळगुमलै' दिया है, और लेख सं. 117 है । "
87. अभिलेख - 612, जै. शि. सं., भाग 3
88. डॉ. ए. के. चक्रवर्ती, जैन इन्सक्रिप्शंस, तमिलनाडु, पृ. 80
89. वही, पृ. 92
90. वही, पृ. 80
91. जैन जवाहिरलाल, भारतीय श्रमण-संस्कृति, पृ. 52
92. ए. के. चक्रवर्ती, सी. के. शिवप्रकाशम, श्रपद स्पजतंजनतम पद ज्उपसदंकनए पृ. 187
93. देखें- जै. इं. तमिलनाडु, पृ. 80
Jain Education International
218
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org