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अध्याय 4 दिगम्बर परम्परा की श्रमणियाँ
4.1 श्वेताम्बर-दिगम्बर परम्परा भेद ___जैन आगम-साहित्य का अनुशीलन करने से यह स्पष्ट है कि भगवान महावीर के समय जिनकल्प और स्थविरकल्प दो प्रकार के साधु थे। जो श्रमण अचेल रहना चाहते थे, वे अचेल रहते और जो सचेल रहना चाहते थे वे वस्त्र धारण करते थे।' महावीर स्वयं अचेलव्रती थे, जबकि पार्श्वनाथ के साधु वस्त्र धारण करते थे। इस प्रकार जैन श्रमणों में अचेल और सचेल दोनों मान्यताएँ प्रचलित थी यह मान्यता श्वेताम्बरों की है। दिगम्बर-परम्परा भगवान ऋषभदेव से महावीर तक अचेल परम्परा को ही स्वीकार करता है। तथापि भगवान महावीर और उनके पश्चात् इन्द्रभूति गौतम, सुधर्मा और जम्बूस्वामी तक श्वेताम्बर और दिगम्बर यह भेद नहीं था। जम्बूस्वामी के पश्चात् दिगम्बर संप्रदाय में विष्णु, नन्दी, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु तथा श्वेताम्बर संप्रदाय में प्रभव, शय्यंभव, यशोभद्र, संभूतिविजय और भद्रबाहु ये पाँच श्रुतकेवली माने गये हैं। भद्रबाहु को दोनों परम्पराएँ श्रुतकेवली के रूप में स्वीकार करती हैं। अत: आचार्य भद्रबाहु (प्रथम) के काल तक भी जैन संघ में भेद की स्थिति उत्पन्न नहीं हुई थी। भद्रबाहु के अचेलवती होने तथा आर्य महागिरि और आर्यरक्षित के जिनकल्प धारण करने का उल्लेख ग्रंथों में मिलता है।
आचार्य भद्रबाहु के पश्चात् आर्य महागिरि और आर्य सुहस्ती के समय में भी मतभेद का बीजारोपण तो नहीं हो पाया, पर कतिपय श्रमण कठोर श्रमणाचार के पक्षपाती और अधिकांश श्रमण समय, सामर्थ्य आदि को दृष्टि में रखते हुए अपवाद मार्ग के समर्थक हो गये थे। हिमवंत स्थविरावली के उल्लेख से भी इस अनुमान की पुष्टि होती है। किन्तु श्रमणों में आचार भेद होने पर भी आपस में मनभेद की स्थितियाँ नहीं थी, अन्यथा दो पृथक् परम्परा के साधु एक साथ मिल बैठकर श्रुतरक्षा एवं संघहित हेतु प्रयत्नशील नहीं होते।'
हिमवन्त स्थविरावली में यह भी उल्लेख है कि कुमारगिरि पर आयोजित सभा में जिनकल्पी आर्य बलिस्सह आदि 200 साधुओं और स्थविरकल्पी आर्य सुस्थित सुप्रतिबद्ध आदि 300 साधुओं के साथ आर्या पोइणी आदि 300 साध्वियाँ भी सम्मिलित हुई थी। आर्या पोइणी इन दोनों परम्पराओं में किस परम्परा से संबंधित थी, इसका उल्लेख
1. अचेलगो य जो धम्मो, जो इमो सन्तरूत्तरो-उत्तराध्ययन 23/13
2. प्रभावक चरिते, आर्यरक्षित प्रबन्धः । 3-4 आचार्य श्री हस्तीमलजी, जैनधर्मका मौलिक इतिहास भाग 2 पृ. 78
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