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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 3.3.2.16 आर्या सादिता (सं. 457)
ये वारणगण नाडिक कुल तथा........के वाचक .......... ढुक की शिष्या थीं। आर्या सादिता के उपदेश से दान-कार्य हुआ।106 इसमें काल का निर्देश नहीं है। ब्राह्मी इंस्क्रिपशंस के अनुसार यह दान ऋषभदेव की प्रतिमा का था तथा सादिता का समय ई. सन 440 तक का है।107
सारांश
मथुरा के शिलालेखों में और भी दानदात्री महिलाएँ।08 सार्थवाहिनी धर्मसोमा (ई.100), कौशिकी शिवमित्रा, आदि के दान की अमरकथा अंकित है इन श्राविकाओं के हृदय में तप और श्रद्धा का अंकुर पैदा करने वाली श्रमणियाँ ही थीं, उन्हीं की प्रेरणा मथुरा के पुरातन वैभव को अक्षुण्ण बनाने वाली बनीं।
मथुरा से मिली हुई सामग्री से यह भी पता चलता है कि जैन समाज में स्त्रियों को बहुत ही सम्मानित स्थान प्राप्त था। अधिकांश दान और प्रतिमा प्रस्थापन उन्हीं की श्रद्धा-भक्ति का फल थी। 'सर्वसत्त्वानां हितसुखाय' और 'अर्हत्पूजायै' ये दो वाक्य कितनी ही बार लेखों में आते हैं। जो उस काल की भक्ति को प्रदर्शित करने वाले हैं।
106. संग्रह सं. 72, मथुरा-प्राकृत-जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2 107. लिस्ट ऑफ ब्राह्मी इंस्क्रिपशंस, पृ. 20 108. मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म, पृ. 450
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