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________________ प्रागैतिहासिक काल से अर्हत् पार्श्व के काल तक निर्ग्रन्थ-परम्परा की श्रमणियाँ 2.6.51 श्रीमती महाविदेह के पुण्डरिकिणी नगरी के वज्रदंत चक्रवर्ती की रानी लक्ष्मीमती की कन्या थी, पुष्कलावती के उत्पलखेट नगर के राजा वज्रबाहु एवं रानी वसुन्धरा के पुत्र वज्रजंघ के साथ इनका विवाह हुआ। वज्रजंघ ही भरतक्षेत्र के आदितीर्थंकर ऋषभदेव हुए एवं श्रीमती हस्तिनापुर के राजकुमार प्रथम दान तीर्थ के प्रवर्तक श्रेयांसकुमार हुए। चक्रवर्ती वज्रदंत ने भी साठ हजार रानियों 20 हजार राजाओं एवं एक हजार पुत्रों के साथ दीक्षा धारण की।219 2.6.52 श्रीमती बन्धुयशा की पर्याय में कृष्ण की पटरानी जाम्बवती ने इनसे प्रोषधव्रत धारण किया था।220 2.6.53 श्रीषेणा और हरिषेणा ये साकेत नगर के राजा श्रीषेण तथा रानी श्रीकान्ता की पुत्रियाँ। पूर्वभव में की हुई प्रतिज्ञा का स्मरण हो जाने से इन दोनों ने दीक्षा ले ली थी। 2.6.54 संयमभूषण आर्जिका ____ इसने हस्तिानापुर के राजा विशाखदत्त की भार्या विजयसुंदरी को "त्रैलोक्य तीज के व्रत" को विधि पूर्वक प्रदान किया था।222 2.6.55 संयम श्री आर्यिका थी, कनकोदरी (अंजना के जीव) को उपदेश देकर सम्यक्त्वी बनाया था।23 2.6.56 सर्वश्री यह आर्यिका पंचमकाल के साढ़े आठ मास शेष रहने पर कार्तिक मास के कृष्णपक्ष के अंतिम दिन स्वाति नक्षत्र में देह त्याग कर स्वर्ग में उत्पन्न होगी।224 2.6.57 सुकुमारी चम्पापुर के सुबन्धु सेठ और उसकी स्त्री धनदेवी की पुत्री। इसके शरीर से दुर्गन्ध आती थी। इसी नगर के सेठ धनदत्त के पुत्र जिनदेव से इसका विवाह हुआ। दुर्गन्ध से खिन्न होकर जिनदेव ने सुव्रत मुनि के पास दीक्षा ले 219. मपु. पर्व 8 श्लोक 85 220. हपु. 60/48-49 दृ. जै. पु. को. 412 221. मपु. 72/253-56; हपु 64/129-31 दृ. जै. पु. को. पृ. 414 222. जैन व्रत कथा संग्रह, पृ. 43 223. पपु. 17/166-69. 191-94 दृ. जै. पु. को. पृ. 420 224. मपु. 76/432-36, इ. जै पु. को. पृ. 431 145 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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