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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 2. मान्यता-भेद - दिगम्बर-परम्परा स्त्री को मुक्ति की अधिकारिणी नहीं मानती, अतः उनके अनुसार चौबीस तीर्थंकरों की कोई भी श्रमणी सर्वज्ञ-सर्वदर्शी नहीं बनीं। सभी श्रमणियाँ देवलोक में गईं, वहाँ से स्त्रीलिंग का छेदन कर पुरूष-पर्याय प्राप्त करके वे मोक्ष में जायेंगी। लेकिन श्वेताम्बर और यापनीय परम्परा ने स्त्री-पर्याय को निर्वाण में बाधक स्वीकार नहीं किया, उनके अनुसार तीर्थंकरों की सभी प्रमुखा श्रमणियाँ मोक्ष में गईं तथा और भी सहस्राधिक अन्य श्रमणियों ने केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति एवं आवश्यक चूर्णि आदि में ऋषभदेव के धर्म परिवार में 20 हजार श्रमण और 40 हजार साध्वियों के आठों कर्मों को समूल नष्ट कर मोक्ष प्राप्त करने का उल्लेख है। यह मान्यता भेद साम्प्रदायिक अभिनिवेश के कारण है। __कुछ मान्यताएँ कालदोष के प्रभाव से भिन्न-भिन्न हो गईं, जैसे आवश्यक मलयगिरी वृत्ति, कल्पद्रुमकलिका आदि श्वेताम्बर साहित्य में ब्राह्मी का विवाह बाहुबली से और सुंदरी का विवाह भरत से होने का उल्लेख प्राप्त होता है। यह विवाह तीर्थंकर ऋषभदेव ने यौगलिक धर्म का निवारण करने हेत किया था, किंत आचार्य जिनसेन ने ब्राह्मी और सुंदरी को अविवाहित माना।'
इसी प्रकार दिगम्बर मान्यता ऋषभदेव के प्रथम समवसरण में ही ब्राह्मी-सुंदरी दोनों को प्रव्रज्या अंगीकर करना मानती हैं, वहाँ श्वेताम्बर मान्यता सुंदरी की प्रव्रज्या चक्रवर्ती भरत के दिग्विजय से लौटने के पश्चात् स्वीकार करती हैं। बाहुबलि के अभिमान को विगलित करने में भी परम्परा भेद है, श्वेताम्बर परम्परा बाहुबली के मान को ब्राह्मी-सुंदरी के उद्बोधन से नष्ट होना मानती है तो दिगम्बर-परम्परा भरत चक्रवर्ती द्वारा पूजा अर्चना किये जाने से दूर हुआ मानती है। तीर्थंकर अरिष्टनेमि की श्रमणी-प्रमुखा के विषय में दिगम्बर-ग्रंथों में राजीमती का नाम है जबकि श्वेताम्बर परम्परा में यक्षिणी का।
इसी प्रकार अन्य भी अनेक मान्यताओं में पारस्परिक विभेद प्राप्त होता है हमने श्वेताम्बर और दिगम्बर मान्यता का स्थान-स्थान पर भेद निर्देश किया है।
अध्ययन एवं विषय की दृष्टि से प्रस्तुत अध्याय 5 भागों में विभाजित किया गया है-(1) ऋषभदेव से अर्हत् पार्श्व के काल तक की जैन श्रमणियाँ (2) पार्श्व की परवर्ती जैन श्रमणियाँ (3) आगम एवं आगमिक व्याख्याओं में वर्णित जैन श्रमणियाँ (4) जैन पुराण-साहित्य में वर्णित जैन श्रमणियाँ (5) जैन कथा-साहित्य में वर्णित जैन श्रमणियाँ। 2.3 ऋषभदेव से अर्हत् पार्श्व के काल तक की जैन श्रमणियाँ
तीर्थंकर ऋषभदेव से महावीर पर्यन्त 24 तीर्थंकरों की चौबीस प्रमुख शिष्याएँ हुईं, इनका सर्वप्राचीन उल्लेख चतुर्थ अंग ‘समवाय' में आता है। उनके नाम हैं - ब्राह्मी, फल्गु, श्यामा, अजिता, कासवी, रति, सोमा, सुमना, वारूणी, सुलसा, धारणी, धरणीधरा, पद्मा, शिवा, श्रुति, अंजुया, रक्षिता, बंधुवती, पुष्पावती, अमला, यक्षिणी पुष्पचूला और चंदना।
4. जै. मौ. इ. भाग 1, पृ. 128 5. द.-देवेन्द्र मुनि जी, भगवान ऋषभदेवः एक परिशीलन, प्र. 74 6. बंभी य फग्गु सामा...................................चंदणज्जा आहिया उ
तित्थप्पवत्तयाणं पढमा सिस्सी जिणवराण।। - समवायांग, सूत्र 649, गाथा 43-45
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