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________________ पूर्व पीठिका चंदनबाला की मूर्ति ( 14वीं शती की ) विविध तीर्थकल्प, कौशाम्बी नगरीकल्प में आचार्य श्री जिनप्रभसूरि के 14वीं शती में कौशाम्बी नगरी यात्रार्थ पधारने का उल्लेख है। आचार्य श्री लिखते हैं कि 'यहाँ के मंदिरों में प्रेक्षकजनों के नयनाभिराम अमृताञ्जन सदृश जिन प्रतिमायें हैं। भगवान पद्मप्रभु के मंदिर में भगवान महावीर को पारणा कराती हुई चंदनबाला की मूर्ति है | 10 पाषाण में उत्कीर्ण चतुर्विध संघ कुम्भारिया जी के प्राचीन मंदिर के रंगमण्डप की छत में शिल्पकाल के उत्कर्ष समय का चित्र है। आचार्य व्याख्यान दे रहे हैं और साधु-साध्वी, श्रावक एवं श्राविका व्याख्यान श्रवण कर रहे हैं। यह चित्र पाषाण में खुदाई का काम कर बनाया गया है। इसका उल्लेख मुनि श्री ज्ञानसुंदरजी ने 'मूर्तिपूजा का प्राचीन इतिहास पुस्तक में किया है । 11 श्रमणियों का चित्रकलायुक्त पत्र जैसे ताड़पत्रीय ग्रंथों के लिये काष्ठफलक के पुट्ठे-पटड़ी होते थे, वैसे ही कागज के ग्रंथों के लिय पुट्ठे-पटड़ी फाटिये आदि गत्ते, पुट्ठे-कागज को चिपकाकर मजबूत किए हुए हुआ करते हैं। रद्दी - कागजों को चिपकाकर बनाये एक पुट्ठे के अंदर लगभग 800 वर्ष पूर्व श्री जिनपति सूरि जी के समय का पालनपुर स्थित साध्वी - मंडल का पत्र शेठ शंकरदान कलाभवन बीकानेर में संग्रहित है। उक्त पत्र साध्वियों की कला के प्रति अभिरुचि प्रदर्शित करते हैं । ऐतिहासिक दृष्टि से ऐसे पत्र महत्वपूर्ण हैं। हमें इस विज्ञप्ति - पत्र का चित्र उपलब्ध नहीं हुआ | 3 12 अन्य विज्ञप्ति पत्रों में चित्रांकित साध्वियाँ संवत् 1853 मार्गशीर्ष शुक्ला 5 रवि का पू. विजयलक्ष्मी सूरि जी को एक विज्ञप्ति पत्र राजनगर, अहमदाबाद पधारने की विनती के लिए लिखा गया। उसमें विजयलक्ष्मी सूरि जी के स्वागत - समैया से संबंधित अनेक चित्रों के साथ उपाश्रय में व्याख्यान करते साधु एवं साध्वी का चित्र भी दर्शाया है । 13 प्रवर्तिनी एवं शिष्या परिवार के सजीव चित्र वि. सं. 1851 में पाटण का चौमासा पूर्ण कर तपागच्छ के श्री पुण्यसागर सूरि के पट्टधर पू. श्री उदयसागर सूरि को बड़ोदरा संघ द्वारा सं. 1852 को भेजा गया एक सुंदर विज्ञप्ति पत्र है जिसमें बड़ोदरा के विभिन्न मनोहारी सुंदर दृश्यों के चित्रों के साथ श्वेतवस्त्रों से युक्त पूज्य श्री उनके पीछे यति शिष्य आगे उपदेश सुनते श्रावक, श्राविका एवं आशीर्वाद व उपदेश देती हुई प्रवर्तिनी मुख्या, साध्वी अपनी शिष्या परिवार के साथ विराजित है । 314 310. प्राचीन ऐति. जैन तीर्थ पुरिमताल, पंन्यास पद्मविजय जी प्रकाशन श्री जै. श्वे. महासभा, हस्तिनापुर (उ. प्र.)। 311. रत्नप्रभाकर ज्ञान पुष्पमाला, लौदी, (राजस्थान ), सन् 1936, पृष्ठ 388 312. भंवरलाल नाहटा, अभिनंदन ग्रंथ, पृ. 126. 313. ऐतिहासिक लेख संग्रह, ला. भ. गांधी, पृ. 472. 314. वही, पृ. 461. Jain Education International 95 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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