________________
जैन श्रमणियों का बहद इतिहास
जैन श्रमणी की आरस पाषाण में खड़ी मूर्ति (संवत् 1205 )285
चित्र 8
प्रस्तुत मूर्ति के हाथ में श्रमणी जीवन का प्रतीक मुखवस्त्रिका एवं रजोहरण है, मूर्ति ऊपर से लेकर नीचे तक वस्त्र से आवृत्त है, यह वेशभूषा श्वेताम्बर जैन श्रमणी की सूचक है। श्रमणी दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार की मुद्रा में स्थित है। कटिभाग को थोड़ा अवनत करके खड़े होना और हाथ जोड़ने की मुद्रा द्वारा नम्रता का जो भाव सूचित किया है, उससे मूर्ति रमणीय और दर्शनीय प्रतीत होती है। मूर्ति के मुखमंडल पर अपार शांति एवं लावण्यपूर्ण तेजस्विता के दर्शन होते हैं तथा त्यागमय जीवन की स्वतः स्फुरित शांति प्रकट होती है। पाँव के दोनों ओर दो उपासिकाएँ हैं।
मूर्ति के नीचे के भाग में "सं. 1205 श्री महत्तरा सपरिवारा.......।" इस प्रकार संक्षिप्त लेख है। इस लेख में साध्वीजी का नाम अंकित नहीं है। यह मूर्ति मुनि यशोविजयजी के संग्रह में है।
285. आचार्य विजयवल्लभसूरि स्मारक ग्रंथ, मुनि श्री यशोविजयजी का लेख, पृ. 173.
70 For Plate Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org