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________________ 1.20.1.4 स्थविरावली तथा गुर्वावली लब्धप्रतिष्ठ इतिहासज्ञ एवं आगमवेत्ता मुनिश्री कल्याणविजयजी के संग्रह में अप्रकाशित हस्तलिखित ग्रंथ हिमवन्त स्थविरावली में इतिहास की दुर्लभ सामग्री प्राप्त होती है। इस स्थविरावली में कालकाचार्य द्वितीय की बहन साध्वी सरस्वती के गर्दभिल्ल द्वारा अपहरण, उसकी मुक्ति व पुनः संयमधर्म में स्थापित करने का उल्लेख है। कुमारगिरि पर आयोजित खारवेल की आगम परिषद सभा में आर्या पोइणी तीनसौ साध्वियों के साथ कलिंग में आई थी, यह इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना भी हिमवन्त स्थविरावली में प्राप्त होती है। 249 इसी प्रकार श्री जिनपतिसूरि के शिष्य (सं. 1223-77) श्री जिनपाल उपाध्याय द्वारा लिखित 'खरतरगच्छ गुर्वावली' जिसमें सं. 1080 से सं. 1393 तक का इतिवृत्त है, उसमें समय-समय पर होने वाले उक्त गच्छ के आचार्यों का संपूर्ण विवरण और उसके साथ श्रमण- श्रमणियों की दीक्षा, दीक्षा स्थान, तिथि, प्रवर्तिनी, महत्तरा, गणिनी आदि पद प्रदान करने का प्रामाणिक वर्णन दिया गया है। इसके पश्चात् भी श्रृंखलाबद्ध इतिहास लिखने की प्रणाली बराबर रही है, उसमें श्रमणियों को भी उतना ही महत्त्व प्रदान किया गया है, जितना श्रमणों को। अतः खरतरगच्छ की श्रमणियों का अद्यतन क्रमबद्ध इतिहास पूर्ण विश्वसनीय रूप से उपलब्ध होता है। श्री धर्मसागरगणी विरचित सूत्र वृत्ति सहित तपागच्छ पट्टावली सं. 1648 की उपलब्ध होती है, किंतु उसमें श्रमणियों का नामोल्लेख कहीं देखने में नहीं आया। लेकिन पं. कल्याणविजय जी द्वारा संपादित तपागच्छ पट्टावली भाग 1 में 'कोडिमदे' की दीक्षा का उल्लेख है 1250 1.20.1.5 पांडुलिपियाँ वीर निर्वाण की चतुर्थ शताब्दी से ही जैन साहित्य को सुरक्षित रखने के लिये शास्त्रों को लिपिबद्ध करने की प्रवृत्ति प्रारंभ हो गई थी उसमें साधुओं के समान साध्वियों ने भी अनेक शास्त्रों व ग्रंथों की प्रतिलिपियाँ की । हिमवंत स्थविरावली में उल्लेख है कि कुमारगिरि पर कलिंग के 'भिक्खुराय' अपरनाम 'महामेघवाहन खारवेल ने शास्त्रों की सुरक्षा हेतु चतुर्विध संघ का सम्मेलन कराया था, यह सम्मेलन वी. नि. 330 के लगभग हुआ माना जाता है, उस सम्मेलन में आर्य बलिस्सह आदि जिनकल्पियों की तुलना करने वाले 200 श्रमण, आर्य सुस्थित आदि 700 स्थविरकल्पी श्रमण तथा आर्या पोइणी आदि 300 श्रमणियाँ, भिक्षुराज सीवंद, चूर्णक, सेलक आदि 400 श्रावक और खारवेल की अग्रमहिषी पूर्णमित्रा आदि 700 श्राविकाएँ सम्मिलित हुई थीं । भिक्खुराय की प्रार्थना पर उन स्थविर श्रमणों एवं श्रमणियों ने अवशिष्ट जिनप्रवचन को सर्वसम्मत स्वरूप में भोजपत्र, ताड़पत्र, वल्कल आदि पर लिखा और इस प्रकार वे सुधर्मा द्वारा उपदिष्ट द्वादशांगी के रक्षक बने | 251 248. नाहटा, पट्टावली प्रबंध संग्रह भूमिका, पृ. 37 249. तेण भिक्खुरायणिवेणं जिणपवयण संगहट्ठ जिणधम्म वित्थर ... जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास एगा परिसा तत्थ कुमारिपव्वय- तित्थम्मि मेलिया. .......अज्जा पोइणीयाईण अज्जाणं णिग्गंठीणं तिन्नि सया समेया । हिमवंत स्थविरावली (अप्रकाशित ) दृष्टव्य: जैनधर्म का मौलिक इतिहास भाग 2, पृ. 780 250. तपागच्छ पट्टावली भाग 1, पृ. 241 251. इह तेणणिवेणं चोइएहिं तेहिं थेरेहिं अज्जिहिं अवसिद्धं जिणपवयणं दिट्ठिवायं णिग्गंठगणाओ थोवं थोवं साहिइत्ता भुज्ज तालवक्कलाइ पत्ते अक्खरसन्निवायोवयं राकइत्ता भिक्खुराय णिवमणोरहं पूरित्ता अज्ज सोहम्मुवएसिय दुवालसंगी रक्खआ ते संजाया । - हिमवंत स्थविरावली (अप्रकाशित) दृष्टव्य: जैनधर्म का मौलिक इतिहास भाग 2, पृ. 484 Jain Education International 54 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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