SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर 69 में चन्दन द्रव्य के साथ पीसी गई शमी एवं पीपल की छाल के मिश्रित लेप को लगाकर वधू और वर के दक्षिण हाथ को मिलाए । उसके ऊपर कौसुंभ - सूत्र बांध दे । हस्त-बन्धन का मंत्र निम्न है "ॐ अर्ह आत्मासि, जीवोऽसि, समकालोऽसि, समचित्तोऽसि, समकर्मासि समाश्रयोऽसि, समदेहोऽसि, समक्रियोऽसि, समस्नेहोऽसि, समचेष्टितोऽसि समभिलाषोऽसि, समेच्छोऽसि, समप्रमोदोऽसि, समविषादोऽसि, समावस्थोऽसि, समनिमित्तोऽसि, समवचा असि, समक्षुत्तृष्णोऽसि समगमोऽसि समागमोऽसि, समविहारोऽसि समविषयोऽसि, समशब्दोऽसि, समरूपोऽसि, समरसोऽसि, समगंधोऽसि, समस्पर्शोऽसि, समेन्द्रियोऽसि समाश्रवोऽसि समबन्धोऽसि, समसंवरोऽसि, समनिर्जरोऽसि, सममोक्षोऽसि, तदेहयेकत्वमिदानीं अर्ह ऊँ ।" यह हस्त-बन्धन का मंत्र है। अन्य धर्म, देश या कुल परम्परा में लग्न करने की बेला में वर को मधुपर्क खिलाना एवं गाय का जोड़ा देना और कन्या को आभरण पहनाना इत्यादि कार्य करते हैं। उसके बाद वधू एवं वर के मातृगृह में प्रवेश कर जाने पर कन्या-पक्ष वाले वेदी की रचना करते हैं । उसकी विधि यह है कुछ लोग काष्ठ - स्तंभों से तथा काष्ठ के आच्छादन से युक्त मण्डप के निकट चौकोर वेदी बनाते हैं। कुछ लोग चारो कोनों में एक के ऊपर एक रखे गए छोटे-छोटे सोने, चांदी, ताम्र या मिट्टी के सात-सात कलशों को चारों तरफ चार हरे बांसो से बांधकर वेदी बनाते हैं। चारों ओर वस्त्र या काष्ठ से निर्मित तोरण और वंदनवार बांधते हैं तथा मध्य में त्रिकोण अग्नि- कुण्ड बनाते हैं । वेदि बनाने के बाद पूर्वोक्त वेश को धारण किए हुए गृहस्थ गुरू वेदी की प्रतिष्ठा करता है । उसकी विधि यह है सुगन्धित द्रव्य, पुष्प एवं अक्षत हाथों में रखकर निम्न मंत्र बोलें I - Jain Education International ― "ॐ नमः क्षेत्रदेवतायै शिवायै क्षां क्षीं क्षू क्ष क्षः इह विवाहमण्डपे आगच्छ-आगच्छ इह बलिपरिभोग्यं गृण्ह - गृह, भोगं देहि, सुखं देहि, यशो देहि, सन्ततिं देहि, वृद्धिं देहि, सर्वसमीहितं देहि देहि स्वाहा । " यह मंत्र बोलकर चारों ही कोनों सुगन्धित द्रव्य, पुष्प, अक्षत डालें और इसी प्रकार तोरण की प्रतिष्ठा करें, उसका मंत्र यह है "ॐ ह्रीं श्रीं नमो द्वारश्रिये सर्वपूजिते सर्वमानिते सर्वप्रधाने इह तोरणस्थासर्वं समीहितं देहि देहि स्वाहा । " For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001690
Book TitleJain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2005
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Culture, & Vidhi
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy