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षोडश संस्कार
आचार दिनकर - 68 परमैश्वर्यभाक, परंपरः परापरोऽपंरपरः, जगदुत्तमः, सर्वगः, सर्ववित्, सर्वजित्, सर्वीयः, सर्वप्रशस्यः, सर्ववन्द्यः, सर्वपूज्यः, सर्वात्मा असंसारः, अव्ययः, अवार्यवीर्यः, श्रीसंश्रयः, श्रेयःसंश्रयः, विश्वावश्यायहृत्, संशयहृत्, विश्वसारो, निरंजनो, निर्ममो, निष्कलंको, निष्पाप्मा, निष्पुण्यः, निर्मनाः, निर्वचाः, निर्देहो; निःसशयो, निराधारो, निरवधि, प्रमाणं, प्रमेयं, प्रमाता, जीवाजीवाश्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षप्रकाशकः स एव भगवान् शान्तिं करोतु, तुष्टिं करोतु, पुष्टिं करोतु, ऋद्धिं करोतु, वृद्धिं करोतु, सुखं करोतु, श्रियं करोतु, लक्ष्मीं करोतु, अर्ह ऊँ।"
इस प्रकार आर्य वेदमंत्र का पाठ करने वाले ब्राह्मण आगे चलें।
इसके बाद इसी विधि से और महोत्सवपूर्वक चैत्यविधि, गुरूपूजन, मण्डलीपूजन, नगरदेवता आदि का पूजन करें एवं नगर के समीप रहें। तत्पश्चात् उचित मार्ग से जहाँ कन्या के पिता का भवन स्थित है, उस नगर में प्रवेश करें। कन्या के नगर में विवाह के लिए चलने वाले वर की यात्रा की भी यही विधि है। नित्य स्नान के बाद कौसुंभ-सूत्र से शरीर का माप करें। उसके पश्चात विवाह का दिन आने पर, विवाह लग्न से पूर्व नगरवासी या अन्य देश से आया हुआ वर पूर्व में कही गई विधि से विवाह के लिए निकले। उसकी बहन विशेष रूप से लवण आदि उतारने का (अर्थात् नजर उतारने का) कार्य करती है। उसके बाद वर की बारात गृहस्थ गुरू सहित राजमार्ग (गली) से होकर कन्या के गृह-द्वार पर जाए। वहाँ स्थित वर की सास, अर्थात् कन्या की माता कपूर एवं दीप से वर की आरती उतारे, अर्थात् आरती करे। उसके पश्चात् वर के ससुराल पक्ष की अन्य स्त्री जलते हुए अंगारों एवं लवण से युक्त शराव-संपुट (सीधा एवं उल्टा रखा हुआ मिट्टी का सकोरा), जिसमें तड़-तड़ इस प्रकार की आवाज आ रही हो, को वर के ऊपर उतारकर प्रवेश के वाममार्ग में स्थापित करे। उसके बाद कोई दूसरी स्त्री कौसंभ-वस्त्र से अलंकृत रई (मथानी) सामने लाए और उससे तीन बार वर के ललाट को स्पर्श करे।
तत्पश्चात् वर वाहन से उतरकर बाएँ पैर से उस अग्नि एवं लवण से युक्त शराव-संपुट को तोड़े। उसके बाद वर की सास, या कन्या की मामी या कन्या का मामा वर के कंठ में उस कौसुंभ-वस्त्र को डालकर खींचते हुए मातृगृह में ले जाए। वहाँ पहले से ही आसन पर बैठी हुई, विभूषित, कौतुक मंगल किए हुए कन्या के वामपार्श्व में मातृदेवी की तरफ मुख करके वर को बैठाएं। तब गृहस्थ गुरू लग्न-वेला के शुभ मुहूर्त
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