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षोडश संस्कार
आचार दिनकर – 65 लिए वस्त्र, आभरण, गन्ध-प्रसाधन आदि उत्सव सहित कन्या के पिता के घर दे। कन्या का पिता भी वर को उसके परिजनों सहित महोत्सवपूर्वक भोजन प्रदान करे एवं वर को वस्त्र, अंगूठी आदि दे तथा लग्नदिन से पहले मास या पक्ष में सम्मानपूर्वक दोनों पक्ष के परिवारजनों को इकट्ठा करके ज्योतिषी को उत्तम आसन पर बैठाकर उसके हाथ से विवाह-लग्न शुभ भूमि पर लिखवाए। जन्मलग्न की भांति चांदी, सोने की मुद्रा, फल, पुष्प, दूब से विवाह-लग्न की अर्चना करे। फिर दोनो पक्ष के बुजुर्ग ज्योतिषी को वस्त्र, अलंकार एवं पान दें। यह विवाह-आरंभ की क्रिया है।
उसके बाद मिट्टी के करवे में जौ बोएं। कन्या के घर में मातृ-स्थापना एवं षष्ठी माता की स्थापना करें। षष्ठी माता आदि (माताओं) की स्थापना पूर्वोक्त विधि से करें। वर के घर में जिनमतानुसार माता एवं कुलकर की स्थापना करें। अन्य धर्म में गणपति, कन्दर्प की स्थापना करते हैं। गणपति एवं कन्दर्प की स्थापना लोक-प्रसिद्ध एवं सुगम है। कुलकर स्थापना की विधि निम्नानुसार है :
___ गृहस्थ गुरू भूमि पर गिरे हुए गोबर से लीपी गई भूमि पर सोने, चांदी, ताम्र अथवा पलाश के काष्ठ से निर्मित पट्ट को स्थापित करे। पट्ट-स्थापन का मंत्र इस प्रकार है :-- ___ "ॐ आधाराय नमः, आधारशक्तये नमः, आसनाय नमः ।"
इस मंत्र का एक बार जाप करके पट्ट को स्थापित करे। उस पट्ट को अमृतमंत्र द्वारा तीर्थ-जल से अभिसिंचित करे। उसके बाद चन्दन, अक्षत एवं दूब से पट्ट को पूजे। फिर प्रारंभ में (सबसे पहले) प्रथम स्थान में निम्न मंत्र से पूजा करें -
"ऊँ नमः प्रथमकुलकराय, कांचनवर्णाय, श्यामवर्णचन्द्रयश:प्रियतमासहिताय, हाकारमात्रोच्चारव्यापितन्यायपथाय, विमलवाहनाभिधानाय, इह विवाह महोत्सवादौ आगच्छ- आगच्छ, इह स्थाने तिष्ठ-तिष्ठ, सन्निहितो भव-भव, क्षेमदो भव-भव, उत्सवदो भव-भव, आनन्ददो भव-भव, भोगदो भव-भव, कीर्तिदो भव-भव, अपत्यसन्तानदोभव-भव, स्नेहदो भव-भव, राज्यदोभव-भव, इदमर्थ्य पाद्यं बलिं चरूं आचमनीयं गृहाण-गृहाण, सर्वोपचारान् गृहाण-गृहाण । तत् ऊँ गन्धं नमः, ऊँ पुष्पं नमः, ऊँ धूपं नमः, ऊँ दीपं नमः, ऊँ उपवीतं नमः, ऊँ भूषणं नमः, ऊँ नैवेद्यं नमः, ऊँ तांबूल नमः ।"
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