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षोडश संस्कार
आचार दिनकर 63 ज्ञानियों के द्वारा ये चारों ही विवाह स्वेच्छा पर आधारित होने से प्रतिलोम कहे गये हैं। माता-पिता एवं गुर्वाज्ञा रहित ये चार विवाह पाप-विवाह हैं और ब्राह्म, आर्ष एवं दैव - विवाह दुषमाकाल में नहीं होते । अधर्म होने के कारण चारो पाप विवाहों की वेदों में भी कोई विधि नहीं कही गई है । जैसा कि कहा गया है।
"गोमेध, नरमेध आदि यज्ञ, तीन प्रकार के विवाह, स्वगोत्र की कन्या से विवाह और स्वगोत्र के गुरू कलियुग में नहीं होते । "
अब वर्तमान में प्रचलित प्राजापति - विवाह की विधि का विस्तृत विवरण इस प्रकार है मूल, अनुराधा, रोहिणी, मघा, मृगशीर्ष, हस्त, रेवती, उत्तरात्रय और स्वाति इन नक्षत्रों में विवाह करना चाहिए। वेध, एकार्गल, लत्ता, पात एवं उपग्रह संयुक्त नक्षत्रों में तथा युति एवं सूर्य - संक्राति में विवाह कार्य करना उपयुक्त नहीं है। तीन दिन का स्पर्श करने वाली तिथि में, क्रूर तिथि में, दग्धतिथि में, रिक्ता तिथि में, अमावस्या, द्वादशी, अष्टमी, षष्ठी तिथि के होने पर विवाह न करें। भद्रा में, गंडांत में, दुष्ट नक्षत्र, तिथि, वार, योगों में व्यतिपात, वैधृति एवं वर्जित समय में यानि अकाल में, सूर्य के स्थान पर गुरू होने पर एवं गुरू के स्थान पर सूर्य होने पर दीक्षा, विवाह और प्रतिष्ठा आदि प्रमुख कार्य नहीं करने चाहिए। चातुर्मास में अधिक मास में, गुरू या शुक्र के अस्त होने की स्थिति में, मलमास में और जन्ममास में विवाह न करे। इसी प्रकार मासांत में, संक्रान्ति होने पर तथा उसके दूसरे दिन, ग्रहण वाले दिन तथा उसके बाद एक सप्ताह तक तथा जन्म की तिथि, वार, नक्षत्र तथा लग्न में नहीं करे। पुनः राशि के एवं जन्म - नक्षत्र के स्वामी के अस्तगत होने पर या क्रूर ग्रह द्वारा हत होने पर भी विवाह न करें। जन्मराशि में, जन्मराशि और जन्मलग्न में बारहवें और आठवें घर में और लग्न के अंश के अधिपति छठें और आठवें स्थान में हों, तो लग्न न करें। स्थिर लग्न में, द्विस्वभाव लग्न में या सद्गुण करके संयुक्त चर लग्न में, उदयास्त के विशुद्ध होने पर विवाह करें, परंतु उत्पातादिक करके विदूषित लग्न में विवाह न करें। लग्न और सप्तम घर ग्रह से वर्जित हो, तीसरे, छठे और ग्यारहवें घर में रवि, मंगल और शनि हो, छठे और तीसरे घर में तथा पापग्रह वर्जित पाँचवे घर में राहू हो, लग्न में तथा पाँचवे, चौथे, दसवें और नवें घर में बृहस्पति हो, ऐसे ही शुक्र, बुध हो, लग्न छठे, आठवें और बारहवें घर से अन्यत्र पूर्ण (बलवान् ) चन्द्रमा हो, तब विवाह करें। क्रूर ग्रहों
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