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________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर - 61 // चौदहवां उदय // विवाह-संस्कार यहाँ इस लोक में जिनका कुल और शील समान हो, उनमें ही परस्पर विवाह सम्बन्ध उचित होता है, क्योंकि शास्त्रो में कहा गया है - "जिनका शील एक समान हो, जिनका कुल एक समान हो, उनमें ही मैत्री एवं विवाह सम्बन्ध करने चाहिए।" उत्कृष्ट या निकृष्ट शील या कुल होने पर मैत्री एवं विवाह सम्बन्ध न करें, क्योंकि समान कुल, समान शील, समान जाति तथा ज्ञात देश, कर्म एवं वंश वाले लोगो में ही विवाह-सम्बन्ध करना उचित है। जिसका कुल अविकृत है, उसे विकृत कुल की कन्या ग्रहण नहीं करनी चाहिए। विकृत कुल इस प्रकार हैं - "रोमश (जिसके बड़े-बड़े रोम हो), आर्शस (बवासीर से पीड़ित), ह्रस्व (बौना), दद्रुण (चर्म रोगी). चितकबरा, कुष्टी, नेत्र तथा उदर रोग वाले तथा बभ्रुवंश वाले (कुल)। इन कुलों में विवाह त्याज्य है, अतः इन कुलों से कन्या का ग्रहण नहीं करना चाहिए। विकृत कन्या इस प्रकार हैं - "अधिक अंगवाली, कम अंगवाली, कपिला (भूरी आंखों वाली), नीली आंखो वाली, भयंकर तथा कटुशब्द कहने वाली। ऐसी कन्या विद्वानों के द्वारा त्याज्य कही गई है। देवर्षि, ग्रह, तारे, अग्नि, नदी, वृक्ष आदि नाम वाली, बहुत रोमों से युक्त, भूरी आंखो वाली एवं जिसका स्वर कर्कश हो, ऐसी कन्या का त्याग करना चाहिए।" कन्यादान हेतु वर के विकृत (अयोग्य) कुल इस प्रकार हैं - "जो कुल हीन एवं क्रूर पत्नी सहित अर्थात् जिसकी पत्नी जीवित हो, जो दरिद्र एवं व्यसनी हो तथा जिनके कुल में कम पुत्र हो, उस कुल का त्याग करना चाहिए। मूर्ख, निर्धन, दूर देश में रहने वाला, शूर अर्थात् योद्धा, मोक्ष का अभिलाषी तथा कन्या से तीन गुणा अधिक आयु वाला - ऐसे वर को कन्या न दें।" ___यदि दोनो का कुल अविकृत हो, तो विवाह सम्बन्ध करना उचित है। दोनों का विकृत कुल होने पर पांच शुद्धियों को देखकर ही वर और वधू का विवाह करना चाहिए। पंच शुद्धियाँ इस प्रकार हैं - "राशि, योनि, गण, नाड़ी एवं वर्ग की शुद्धि देखकर वर-वधू का विवाह सम्बन्ध करना चाहिए" तथा "कुल, शील, सनाथता, विद्या, धन, शरीर एवं आयु आदि सात गुण वर में देखने चाहिए। इससे अधिक तो भाग्य के अधीन है। गर्भ से आठवे वर्ष बाद कन्या का विवाह कर देना चाहिए। ग्यारह वर्ष एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001690
Book TitleJain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2005
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Culture, & Vidhi
File Size12 MB
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