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________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर - 56 करें।" अन्य कारूओं, अर्थात् शिल्पियों को भी गुरू की अनुज्ञा के बिना गुरू एवं धर्म आदि से संबंधित कार्यो में उत्तरासंग को धारण करना बताया गया है। यह व्याख्या करके गुरू शिष्य को चैत्यवंदन कराए। परमेष्ठी-मंत्र का उच्चारण एवं उस मंत्र की व्याख्या पूर्व की भांति ही करे। अधम-शूद्रादि "नमो" के स्थान पर “णमो" का उच्चारण करें, यह गुरू परम्परा है। गुरू शिष्य सहित उत्सवपूर्वक अर्थात् धूमधाम से उपाश्रय में जाए। वहाँ मण्डली पूजा, गुरू को वन्दन करना एवं वासक्षेप ग्रहण करना आदि पूर्व की भांति ही करें। उसके बाद मुनियों को अन्न, वस्त्र, पात्र आदि का दान करें और चतुर्विध संघ की पूजा करें। यह उपनयन संस्कार में शूद्रादि के उत्तरीय वस्त्र धारण करने एवं उत्तरासंग धारण करने की अनुज्ञा की विधि है। बटुक (ब्रह्मचारी) बनाने की विधि का सम्पूर्ण विवरण इस प्रकार से ऐसे ब्राह्मण जो सम्यक प्रकार से उपनीत हैं, वेद-विद्या का जिन्हें ज्ञान है, जो बुरे दान का ग्रहण नहीं करते, जो शूद्र के अन्न का भोजन नहीं करते, जो जैन ब्राह्मण (माहन) के आचार में रत हैं तथा गृहस्थ के सभी संस्कार एवं प्रतिष्ठा आदि कर्म करते हैं, वे पूजनीय होते हैं। वे ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि राजाओं की सेवा-सुश्रुषा, अर्थात् उनका भोजन पकाना, उनकी आज्ञा के अनुसार अन्य कार्य करना, उनके सत्कारार्थ उठना, चापलूसी करना, प्रशंसा करना, नमस्कार के बिना उन्हें आशीर्वाद देना आदि ज्ञान-कर्म तथा कृषि एवं व्यापार का कार्य, अश्व, बैल आदि को दक्ष बनाना आदि कार्यो के योग्य नहीं होते हैं, अर्थात् उनके लिए ऐसे कार्य करना उचित नहीं हैं। पूर्व में कहे गए कर्मों में बटूकृत ब्राह्मण (जिनका बटूकरण हो चुका है) लगाने के योग्य होते हैं, अतः उनके बटूकरण की विधि का यहाँ उल्लेख है। कहां भी गया है कि व्रतों से च्युत व्रात्य (संस्कार से रहित ब्राह्मण आदि) नैवेद्य आदि का आहार करने वाले, अनुचित कर्म करने वाले, वेद को न जानने वाले, जप न करने वाले, शस्त्र को धारण करने वाले, असभ्य, कुलहीन, नीचकर्म करने वाले विप्र, मृत्युभोज खाने वाले, चारण एवं बंदीजन, घण्टी बजाने वाले सेवक, गंध एवं तांबूलजीवी, विप्र वेष धारण करने वाले नट, परशुराम वंश के ब्राह्मण, अन्य जाति में जन्मे हुए, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001690
Book TitleJain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2005
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Culture, & Vidhi
File Size12 MB
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