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षोडश संस्कार
आचार दिनकर - 57 बन्दी बनकर रहने वाले . . . . इत्यादि जो विप्र रूप में हैं, उन ब्राह्मणों को बटूकरण बताया गया है। उसकी विधि इस प्रकार है :
सबसे पहले गृहस्थ गुरू उसके घर में विधि के अनुसार पौष्टिककर्म करे। उसके बाद उस शिष्य को बैठाकर उसका मुण्डन कराए। फिर मंत्रों के द्वारा अभिमंत्रित तीर्थजल से उसको स्नान कराए। तीर्थोदक को अभिमंत्रित करने का मंत्र यह है :
"ॐ वं वरूणोऽसि, वारूणमसि, गांगमसि, यामुनमसि, गौदावरमसि, नार्मदमसि, पौष्करमसि, सारस्वतमसि, शातद्रवमसि, वैपाशमसि, सैन्धवमसि, चान्द्रभागमसि, वैतस्तमसि, ऐरावतमसि, कावेरमसि, कारतोयमसि, गौतममसि, शैतमसि, शैतोदमसि, रोहितमसि, रोहितांशमसि, सारेयवमसि, हारिकान्तमसि, हारिसलिलमसि, नारिकान्तमसि, नारकान्तमसि, रौप्यकूलमसि, सौवर्णकूलमसि, सलिलमसि, रक्तवतमसि, नैमग्नसलिलपाममसि, उन्मग्नमसि, पाद्ममसि, महापद्ममसि, तैंगिच्छमसि, कैशरमसि, पौण्डरीकमसि, हादमसि, नादेयमसि, कौपमसि, सारसमसि, कौण्डमसि, नैझरमसि, वापेयमसि, तैर्थमसि, अमृतमसि, जीवनमसि, पवित्रमसि, पावनमसि, तदमु पवित्रय कुलाचार रहितमपि देहिनं।"
इस मंत्र से कुशाग्र द्वारा सात बार अभिसिंचित करे। उसके बाद नदी के तट पर, तीर्थ में, मंदिर में, अथवा पवित्र स्थान में, या घर में, जिसका बटूकरण होना है, उस पुरूष को तिहरी कुश की मेखला बांधे। मेखला बंधन का मंत्र यह है :
"ऊँ पवित्रोऽसि, प्राचीनोऽसि, नवीनोऽसि, सुगमोऽसि, अजोऽसि, शुद्धजन्मासि, तदमुं देहिनं घृतव्रतमव्रतं वा पावय, पुनीहि अब्राह्मणमपि ब्राह्मणं कुरू।"
यह मंत्र तीन बार पढ़े। उसके बाद उस शिष्य को लंगोटी धारण कराए।
कौपीन (लंगोटी) का मंत्र यह है :
"ऊँ अब्रह्मचर्य गुप्तोऽसि, ब्रह्मचर्यधरोऽपि वा। व्रतः कौपीन बन्धनेन ब्रह्मचारी निगद्यते।"
यह मंत्र तीन बार पढ़े। उसके बाद पूर्वानुसार ब्राह्मण के समान उपवीत को मंत्रपाठ पूर्वक लंगोट पहनाए। उसका मंत्र यह है -
"ऊँ सधर्मोऽसि, अधर्मोऽसि, कुलीनोऽसि, अकुलीनोऽसि, सब्रह्मचर्योऽसि, अब्रह्मचर्योऽसि, सुमनाअसि. दुर्मनाअसि, श्रद्धालुरसि,
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