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षोडश संस्कार
आचार दिनकर - 48 को छोड़कर सिर पर पगड़ी धारण मत करना। प्रायः (जितना हो सके उतना) सर्व जीवों को धर्मोपदेश देना। व्रतारोपण को छोड़कर गृहस्थ के शेष पन्द्रह संस्कार निर्ग्रन्थ गुरू की आज्ञा से कराना तथा शांतिक एवं पौष्टिक कर्म करना, जिन-प्रतिमा की प्रतिष्ठादि करवाना, निर्ग्रन्थ की आज्ञा से प्रत्याख्यान करना और अन्य को करवाना। दृढ़ सम्यक्त्व को धारण करना, मिथ्याशास्त्र का त्याग करना। अनार्य देशों में नहीं जाना और तीनों प्रकार की, अर्थात् मन, वचन, काया की शुद्धि से शौच का आचरण करना। वत्स, तुम्हारे द्वारा पाले जाने वाले इन व्रतों के आदेश की अवधि यावज्जीवन है। इस प्रकार यह ब्राह्मणों के व्रतादेश कहे गए हैं।
नीचे क्षत्रियों के व्रतादेश वर्णित है :
हमेशा पंच परमेष्ठी महामंत्र का स्मरण करना और त्रिकाल शक्रस्तव द्वारा जिनेश्वरों को वन्दन करना। मदिरा, मांस, मधु (शहद), अचार, उदुंबर फल और रात्रि भोजन इनका यत्नपूर्वक त्याग करना। दुष्टों का निग्रह करना, युद्धादि के अतिरिक्त प्राणियों का वध नहीं करना। विधिपूर्वक साधुओं की उपासना करना तथा (गृहस्थों के) द्वादश व्रतों का पालन करना। निश्चित विधि का उल्लंघन न करते हुए विधिवत् परमात्मा की पूजा करना और प्रयत्नपूर्वक उपवीत सहित अधोवस्त्र को धारण करना। संन्यासी, अन्यधर्मी, ब्राह्मण एवं देवालयों के प्रति लोकाचारपूर्वक क्रमशः प्रणाम, दान, पूजादि कार्य करना। सभी सांसारिक विधि-विधान जैन ब्राह्मणों से एवं धार्मिक कार्य निर्ग्रन्थ मुनियों के द्वारा कराना तथा स्वयं को दृढ़ सम्यक्त्व से वासित करना। शत्रुओं से घिरी हुई युद्ध भूमि में हृदय में वीर रस को धारण करना। युद्ध में मौत का भय बिल्कुल भी नहीं रखना। गाय-ब्राह्मण-देव-गुरूजनों और मित्र की रक्षा के निमित्त एवं देश का विभाजन होने की स्थिति में (युद्ध में) मृत्यु को भी सहन करना। ब्राह्मण और क्षत्रियों की क्रिया में विद्यावृत्ति एवं व्रत की अनुज्ञा को छोड़कर अन्य कोई भेद नहीं है। शौर्य के द्वारा भूमि का अर्जन करने वालों के लिए दुष्टों को दण्ड देना, दुष्टों का निग्रह करना योग्य है, भूमि और प्रताप का लोभ करना उचित है। (ब्राह्मणव्यतिरिक्तं च क्षत्रियो दानमाचरेत्) क्षत्रिय को दान का आचरण करना चाहिए। ये क्षत्रियों के व्रतादेश हैं।
वैश्यों के लिए व्रतादेश निम्नानुसार हैं -
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