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________________ षोडश संस्कार 45 आचार दिनकर इस मंत्र से तुम विश्व में पूजित, सम्मानित हो जाओगे । प्राणान्त होने पर भी इसका त्याग करना उचित नहीं है । व्यक्ति गुरू का त्याग करने पर दुख को प्राप्त करता है। गुरू एवं मंत्र - दोनों का परित्याग करने पर महात्मा पुरुष भी नरक को प्राप्त होते हैं। यह जानकर हमेशा इस मंत्र को अच्छी तरह ग्रहण करना चाहिए। तुम्हारे समस्त कार्य इस मंत्र से निश्चय ही सिद्ध होंगे। गुरू द्वारा इस प्रकार की शिक्षा देने पर उपनीत पुरूष तीन प्रदक्षिणा देकर "नमोस्तु - नमोस्तु" - इस प्रकार कहकर गुरू को नमस्कार करे। गृहस्थ गुरू को स्वर्ण की जिनउपवीत, सफेद रेशमी वस्त्र एवं स्वर्ण का कटिसूत्र आदि अपनी शक्ति के अनुरूप दें। सारे संघ को तांबूल (पान) एवं वस्त्र प्रदान करें। इस प्रकार यह उपनयन व्रतबंधन विधि कही गई है। अब व्रतादेश की विधि का वर्णन किया जा रहा है :- उसी क्षण, उसी संघ समुदाय में, उसी गीत वाद्य आदि उत्सव में, उसी चौकोर वेदिका की स्थापना का संयोग होने पर व्रतादेश का कार्य आरम्भ करना चाहिए। उसका क्रम इस प्रकार है गृहस्थ गुरू उपनीत पुरूष के सूती तथा रेशमी अन्तरीय एवं उत्तरीय वस्त्र उतरवा कर तथा मुंज की कटि - मेखला, लंगोटी, उपवीत आदि को उसकी देह पर धारण करवा कर उसके ऊपर कृष्ण मृगचर्म, या वृक्ष की छाल धारण कराएं। उसके हाथ में पलाश का दण्ड दें और इस मंत्र का पाठ करें। — -- "ॐ अर्ह ब्रह्मचार्योऽसि, ब्रह्मचारिवेषोऽसि, अवधि ब्रह्मचार्योऽसि, धृतब्रह्मचार्योऽसि धृताजिनदण्डोऽसि, बुद्धोऽसि प्रबुद्धोऽसि धृतसम्यक्त्वोऽसि, दृढ़सम्यक्त्वोऽसि, पुमानसि, सर्वपूज्योऽसि, तदवधिब्रह्मव्रतं आगुरूनिर्देशं धारयेः अर्ह ऊँ ।" इस मंत्र को पढ़कर उपनीत पुरूष को व्याघ्रचर्म, या काष्ठ से निर्मित आसन पर बैठाएं। उसके दाएँ हाथ की तर्जनी अंगुली में दूब युक्त सोने की पंचगुंजा माप की, अर्थात् सोलह मासे की पवित्र मुद्रिका पहनाएं। पवित्रिका धारण करवाने का मंत्र यह है "पवित्रं दुर्लभं लोके सुरासुरनृवल्लभम् । सुवर्णं हन्ति पापानि मालिन्यं च न संशयः । " उसके बाद उपनीत पुरूष पंचपरमेष्ठी मंत्र का मुख से पाठ करते हुए गन्ध, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य से चारों दिशाओं में रही हुई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001690
Book TitleJain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2005
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Culture, & Vidhi
File Size12 MB
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