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षोडश संस्कार
आचार दिनकर - 44 फिर इस मंत्र का तीन बार उपनेय पुरूष के मुख से उच्चारण कराए, यथा -
"नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्व साहूणं।"
इसके पश्चात् उसको इस मंत्र-प्रभाव को सुनाएं, जो इस प्रकार है--
इसके सोलह अक्षरों में से एक-एक अक्षर जगत् में प्रकाश करने वाला है। यह पंचनमस्कार मंत्र सैंकड़ो-हजारों लोगों को माहण (नाविक) के समान संसार-सागर से तारने वाला है। पंचनमस्कार मंत्र के चिन्तन मात्र से ही जल, अग्नि आदि का प्रकोप स्तंभित हो जाता है। शत्रु, विघ्न/काम, चोर, राजभय, घोर उपसर्ग आदि नष्ट हो जाते हैं। पंचनमस्कार मंत्र के पाचों पदों के अक्षरों को एकत्रित करके एक तरफ रखें और अनंतगुणों वाले तीनों लोकों को दूसरी ओर रखें, तो भी तीनों लोकों की अपेक्षा यह अधिक महिमाशाली है। जो लोग सुषमा आदि आरों की अनंत उत्सर्पिणी-अवसर्पिणियों से संसार के इस भवचक्र में फंसे हैं, उनके लिए भी यह मंत्र श्रेष्ठ तारक कहा गया है। पहले भी इस मंत्र को पाकर इस संसार में लोग मोक्ष को प्राप्त हुए हैं। जब जिन मोक्ष पद को प्राप्त हुए, तब यह बेचारा जगत् उनके बिना कैसे रहता ? यह देखकर भुवन के उद्धार के लिए उन धीर पुरूषों ने अपना मंत्ररूप शरीर यहीं छोड़ दिया।
दिन की उत्पत्ति करने वाला सूर्य, पूर्णिमा का चन्द्र, जो पूर्णिमा जैसा होता है; पाताल, आकाश, स्वर्ग आदि सभी, बहुत अधिक कहने से क्या लाभ ? ऐसी कोई वस्तु है, नहीं है, जो उससे भिन्न, या जो उसके समान हो। सिद्धांतरूपी सागर के मथने से जो नवनीत निकला, वही परमेष्ठी मंत्र है। इसे हमेशा हृदय में धारण करना चाहिए। यह सब पापों को हरने में समर्थ तथा सर्ववांछित को देनेवाला है। मोक्ष-पद पर चढ़ने का सोपान है। यह महामंत्र पुण्यवानों को ही प्राप्त होता है। आपके द्वारा यह प्रयत्नपूर्वक धारण करने योग्य है, इसे चाहे जिसको न दें।
यदि इसे अज्ञानियों को सुनाया जाए तो यह श्रापरूप (कष्टदायी) होता है। अपवित्र, शठ (धूत) एवं अस्थिर चित्त वाले मनुष्य को इसका स्मरण नहीं करना चाहिए। अविनीतों (उद्दण्डों) को, वाचालों को, बालकों को, अशुचि से युक्त व्यक्ति को, अधर्मियों को, कुदृष्टि वाले पुरूषों को, अशुद्ध, दुष्ट एवं निम्न जातिवालों को कभी यह मंत्र नहीं देना चाहिए।
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