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________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर -- 41 देकर पूर्वाभिमुख एवं दक्षिणाभुिमख जिनबिंब के सम्मुख भी उसी प्रकार से शक्रस्तव का पाठ करे। वहाँ मंगल गीत गाएं जाए एवं वाजिंत्र बजाएं। उस समय वहाँ आचार्य, उपाध्याय, साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप चतुर्विध संघ को एकत्रित करें। प्रदक्षिणा एवं शक्रस्तव के पाठ के बाद गृहस्थ गुरू उपनयन का प्रारंभ करने के लिए वेदमंत्र का उच्चारण करे। उपनेय पुरूष दूब, फल से परिपूर्ण हाथ को अंजलिबद्ध करके जिनप्रतिमा के समक्ष खड़े होकर मंत्र सुने। उपनयन आरंभ करने का वेदमंत्र इस प्रकार है - "ऊँ अर्ह अर्हद्भ्यो नमः, दर्शनाय नमः, चारित्राय नमः, संयमाय नमः, सत्याय नमः, शौचाय नमः, ब्रह्मचर्याय नमः, आकिंचन्याय नमः, तपसे नमः, शमाय नमः, मार्दवाय नमः, आर्जवाय नमः, मुक्तये नमः, धर्माय नमः, संघाय नमः, सैद्धांतिकेभ्यो नमः, धर्मोपदेशकेभ्यो नमः वादिलब्धिभ्यो नमः अष्टांगनिमित्तज्ञेभ्यो नमः, तपस्विभ्यो नमः, विद्याधरेभ्यो नमः, इहलोकसिद्धेभ्यो नमः, कविभ्योनमः, लब्धिमद्भ्यो नमः, ब्रह्मचारिभ्यो नमः, निष्परिग्रहेभ्यो नमः, दयालुभ्यो नमः, सत्यवादिभ्यो नमः, नि:स्पृहेभ्यो नमः, एतेभ्यो नमस्कृत्यायं प्राणी प्राप्तमनुष्यजन्मा प्रविशति वर्णक्रमं अर्ह ऊँ।।" . वेदमंत्र का उच्चारण होने पर पूर्ववत् तीन-तीन प्रदक्षिणा देकर चारों दिशाओं में युगादिदेव आदिनाथ भगवान् के स्तवन सहित शक्रस्तव का पाठ करें। उस दिन उपनेय पुरूष जल व यव के अन्न से आयम्बिल करे। उसके बाद गृहस्थ गुरू उपनेय पुरूष को वामपार्श्व में बैठाकर (गृहस्थ गुरू) अमृतमंत्र द्वारा सर्व तीर्थ के जल को कुशाग्र पर लेकर उसे अभिसिंचित करे। फिर पंचपरमेष्ठी मंत्र का पाठ करके "नमोऽहत्सिद्धाचार्यो- पाध्यायसर्वसाधुभ्यः" - इस प्रकार कहकर पूर्वाभिमुख जिन प्रतिमा के आगे उपनेय पुरूष को खड़ा करें। उसके बाद गृहस्थ गुरू चन्दन को मंत्र द्वारा अभिमंत्रित करे। वह चंदन-मत्र इस प्रकार है - ___"ॐ नमो भगवते, चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय, शशांकहारगोक्षीरधवलाय, अनंतगुणाय, निर्मलगुणाय, भव्यजनप्रबोधनाय, अष्टकर्ममूलप्रकृतिसंशोधनाय, केवलालोकविलोकित- सकललोकाय, जन्मजरामरणविनाशनाय, सुमंगलाय, कृतमंगलाय, प्रसीद भगवन् इह चन्दनेनामामृताश्रवणं कुरू कुरू स्वाहा।" इस मंत्र द्वारा चंदन को अभिमंत्रित करके हृदय पर जिन उपवीतरूप, कटि पर मेखलारूप एवं ललाट पर तिलकरूप रेखा अंकित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001690
Book TitleJain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2005
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Culture, & Vidhi
File Size12 MB
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