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________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर करे। उसके बाद उपनेय पुरूष गुरू के पैरों में गिरकर 'नमोस्तु - नमोस्तु' कहे। फिर खड़े होकर अंजली बांधकर इस प्रकार कहे . - "हे भगवन् ! मैं वर्णरहित हूँ, आचाररहित हूँ, मंत्ररहित हूँ, गुणरहित हूँ, धर्म रहित हूँ, शुद्धि से रहित हूँ, वेद से रहित हूँ, अतः पूजन, अध्यापन, पितृकर्म एवं अतिथिकर्म में मुझे नियोजित करें। " पुनः " नमोस्तु - नमोस्तु" कहकर गुरु के चरणों में गिरता है। गुरू उपनेय पुरूष की शिखा को पकड़कर उसे निम्न मंत्रपूर्वक ऊपर की ओर उठाए - 42 "ॐ अर्ह देहिन्निमग्नोऽसि भवार्णवे तत्कर्षति त्वां भगवतोऽर्हतः प्रवचनैकदेशरज्जुना गुरूस्तदुत्तिष्ठ प्रवचनादादाय श्रद्दधाहि अर्ह ॐ । । " इस प्रकार उपनेय को उठाकर जिनबिंब के समक्ष पूर्वाभिमुख खड़ा करे । तत्पश्चात् गृहस्थ गुरू तीन तन्तुओं से बटी हुई एकाशीति (इक्यासी) हाथ हाथ परिमाण की मुंज - मेखला को अपने दोनों हाथों में रखकर निम्न वेदमंत्र का पाठ करे "ॐ अर्ह आत्मन् देहिन् ज्ञानावरणेन बद्धोऽसि, दर्शनावरणेन, बद्धोऽसि वेदनीयेन बद्धोऽसि, मोहनीयेन बद्धोऽसि, आयुषा बद्धोऽसि, नाम्ना बद्धोऽसि, गोत्रेन बद्धोऽसि, अन्तरायेण बद्धोऽसि कर्माष्टकप्रकृ तिस्थितिरसप्रदेशैबद्धोऽसि तन्मोचयति त्वां भगवतोऽर्हतः प्रवचनचेतना, तद् बुद्ध्यस्वः मामुहः, मुच्यतां तव कर्मबन्धनमनेन मेखलाबन्धेन अर्ह ॐ।।" इस मंत्र को पढ़कर उपनेय पुरूष के कटि भाग में नौ बार मोड़कर मेखला को बांधे। उसके पश्चात् "ॐ नमोस्तु ॐ नमोस्तु" इस प्रकार कहकर उपनेय पुरूष गृहस्थ गुरु के चरणों में गिर जाए । ब्राह्मण को इक्सायी हाथ परिमाण मेखला, इक्यासी तन्तुगर्भित जिनउपवीत की सूचना देने के लिए है । क्षत्रियों के लिए चौवन 54 हाथ परिमाण तन्तुगर्भ की मेखला, चौवन हाथ जिनउपवीत को धारण करने का निर्देश किया है। विप्रो को नौ गुना करके, क्षत्रियों को छः गुना करके एवं वैश्यों को तिगुना करके मेखला बांधनी चाहिए। इस कटिसूत्र (मुंज की घास से निर्मित), लंगोटी एवं जिनउपवीत की पूजा तथा गीत आदि मंगलगान गाते हुए रात्रि जागरण लग्न-दिन की पूर्व रात्रि मे करना चाहिए। उसके बाद पुनः गृहस्थ गुरू दोनो हाथों में उपनेय के एक बेंत चौड़ी और तीन बेंत लम्बी लंगोटी को रखकर निम्न वेदमंत्र का पाठ करे - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001690
Book TitleJain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2005
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Culture, & Vidhi
File Size12 MB
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