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षोडश संस्कार
आचार दिनकर - 35 शूद्र सर्व मुण्डन, अर्थात् पूरा ही मुण्डन करवाते हैं, शिखा नहीं रखते । चूड़ाकरण करते समय निम्न मंत्र का पाठ करें -
"ऊँ अहं ध्रुवमायुधुवमारोग्यं ध्रुवाः श्रियों ध्रुवं कुलं ध्रुवं यशो ध्रुवं तेजो, ध्रुवं कर्म ध्रुवा च कुलसन्ततिरस्तु अर्ह ऊँ।।"
इस मंत्र का सात बार पाठ करके तीर्थजल से शिशु को अभिसिंचित करें। उस स्थान पर गीत, वाद्य आदि की व्यवस्था करें। उसके बाद पंचपरमेष्ठी का पाठ करते हुए बालक को आसन से उठाकर स्नान कराएं। स्नान करवाने के बाद उसे चन्दन आदि का लेप करें, श्वेत वस्त्र पहनाएं तथा उपाश्रय में आभूषणों से भूषित करें। वहाँ से बालक को उपाश्रय ले जाएं। मण्डली पूजा, गुरूवंदन करना व वासक्षेप लेना आदि क्रियाएँ पूर्व की भांति ही करें।
उसके पश्चात् साधुओं को वस्त्र, अन्न, पात्र एवं षटविकृतियों का दान करें। गृही गुरू को वस्त्र एवं स्वर्ण का दान करें। नाई को वस्त्र एवं कंकण का दान करें।
इस प्रकार मातृपूजा एवं पौष्टिककर्म के उपकरण एवं कुलोचित नैवेद्य आदि इस मुण्डन-संस्कार-विधि हेतु आवश्यक है। . इस प्रकार वर्धमानसूरि रचित आचारदिनकर में गृहिधर्म का चूडाकरण-संस्कार नामक ग्यारहवां उदय समाप्त होता है।
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