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________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर - 34 .// ग्यारहवाँ उदय // चूडाकरण-संस्कार-विधि तीनों हस्त (हस्त, चित्रा, स्वाति), मृगशीर्ष, ज्येष्ठा, रेवती, पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा - इन नक्षत्रों में प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी आदि शुभ तिथियों में तथा सोमवार, बुधवार एवं शुक्रवार में से किसी शुभ वार को बालक का चंद्रबल एवं ताराबल देखकर क्षौरकर्म किया जाना चाहिए। पर्यों के दिनों में, यात्रा में, स्नान के पश्चात्, भूषित होने पर, त्रिसंध्या के समय, रात्रि में, संग्राम (रणक्षेत्र) में, वन में और ऊपर कही गई तिथियों एवं वारों के अतिरिक्त अन्य किसी तिथि या दिन में तथा किसी मंगल कार्य के प्रसंग में क्षौरकर्म नहीं करना चाहिए। क्षौरकर्म उपयुक्त नक्षत्रों में अपनी कुल-विधि के अनुसार करना चाहिए किन्तु मुनिजनों का कथन है कि जब बुध, गुरू और शुक्र ग्रह केन्द्र में हो, तब यह क्षौरकर्म करना चाहिए। यदि उस समय सूर्य केन्द्र में हो, तो जातक ज्वर से पीड़ित होता है, मंगल निर्बल हो तो शस्त्र से नाश होता है एवं नीच का शनि होने पर शरीर का नाश होता है। चतुर्थी, षष्ठी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी एवं काली चतुर्दशी सहित अमावस्या क्षौरकर्म हेतु वर्जित है। धन, व्यय एवं त्रिकोण में अशुभ ग्रह हों, तो मृत्यु को देने वाले होते हैं, अतः उस स्थिति में क्षौरकर्म नहीं करना चाहिए और इन्हीं घरों में शुभ ग्रह हों, तो यह क्षौर-क्रिया पुष्टिकारक होती है। ___ बालक का सूर्य जिस मास में बलवान् हो, उस महीने में एवं जिस दिन चंद्र बलवान् हो, उस दिन ऊपर कही गई तिथियों, वारों एवं नक्षत्रों के होने पर कुलाचार के अनुरूप कुलदेवता के स्थान पर ग्राम, वन, पर्वत अथवा घर में शास्त्रोक्त विधि से पौष्टिककर्म करें। तत्पश्चात् षष्ठी माता को छोड़कर शेष सभी माताओं की पूर्ववत् पूजा करें। उसके बाद कुलाचार के अनुसार कुल-देवता के लिए नैवेद्य, पकवान आदि बनाएं। ये सब करने के बाद गृहस्थ गुरू स्नान किए हुए बालक को आसन पर बैठाकर बृहत्स्नात्र विधि से प्राप्त जिन-स्नात्र जल के द्वारा शान्तिदेवी के मंत्र से उसे अभिसिंचित करे। उसके बाद कुल परम्परागत नाई के हाथ से बालक का मुण्डन कराएं। तीनों ही वर्ण में सिर के मध्य भाग में शिखा रखते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001690
Book TitleJain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2005
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Culture, & Vidhi
File Size12 MB
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