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षोडश संस्कार
आचार दिनकर 31
उसके बाद सभी प्रकार के अन्नों, सब्जियों एवं विकृतियों को घी, तेल, ईक्षुरस, गोरस (दूध) एवं जल में पकाकर अनेक प्रकार के, अर्थात् सैकड़ों तरह के व्यंजन बनाए ।
फिर अर्हत् - प्रतिमा को बृहत्स्नात्र विधि से पंचामृत स्नान कराए । अर्हत्कल्प में उल्लेख किए हुए नैवेद्य मंत्र द्वारा, अन्न, शाक एवं विकृति के पाक को पृथक् पात्र में संचित कर जिन - प्रतिमा के सम्मुख चढ़ाए। सभी प्रकार के फल भी रखे ।
उसके बाद शिशु पर जिन - प्रतिमा के स्नात्रजल का सिंचन करे । पुनः वे सब वस्तुएँ, जो जिन - प्रतिमा के सम्मुख चढ़ाई थीं, वे सब वस्तुएँ अमृताश्रवमंत्र, जिसमें सूरि मंत्र भी शामिल है, के द्वारा श्री गौतमस्वामी की प्रतिमा के सम्मुख रखे । उसी प्रकार की सब वस्तुएँ कुलदेवता के मंत्र द्वारा कुलदेवता को एवं देवीमंत्र से गौत्रदेवी की प्रतिमा के सम्मुख चढ़ाए । उसके पश्चात् कुलदेवी के नैवेद्य में से शिशु के योग्य आहार लेकर मंगलगीत गाए जाने पर माता पुत्र के मुख में दे । गृहस्थ गुरू निम्न वेदमंत्र का तीन बार उच्चारण करे
"अर्ह भगवानर्हन् त्रिलोकनाथः त्रिलोकपूजितः सुधाधारधारितशरीरोऽपि कावलिकाहारमाहारितवान् तपस्यन्नपि पारणाविधाविक्षुरसपरमान्नतद्देहिन्नौदारिकशरीरमाप्तस्त्वमप्याहारय
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भोजनात्परमानन्दादापकं केवलं ।
आहारं तत्ते दीर्घमायुरारोग्यमस्तु अहं ॐ।। "
उसके पश्चात् छः विकृतियों एवं छः रसों से युक्त आहार साधुओं को दें । यति गुरू के मण्डलपट्ट के ऊपर खीर से भरा हुआ स्वर्ण पात्र रखें। फिर द्रोण के प्रमाणानुसार सभी प्रकार के अन्न का दान करें, तुला प्रमाण, घी, तेल, लवण (नमक) आदि का दान करें एवं सभी प्रकार के 108 फल, तांबे का चरू (कलश), कांसे की थाली एवं वस्त्र युगल आदि गृहस्थ गुरू को प्रदान करें ।
इस संस्कार हेतु सभी प्रकार के अन्न, फल एवं विकृतियां, स्वर्ण, चांदी, नाम्र एवं कांस्य के पात्र आदि सभी वस्तुएँ एक स्थान एकत्रित करें । इस प्रकार वर्धमानसूरि प्रतिपादित आचारदिनकर में गृहिधर्म का अन्नप्राशन- संस्कार नामक यह नवाँ उदय समाप्त होता है ।
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