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________________ षोडश संस्कार - आचार दिनकर / / नवाँ उदय / / अन्नप्राशन- संस्कार - विधि जन्म से छठे महीने में पुत्र को एवं पाँचवे महीने में पुत्री को विधि अनुसार आहार कराएं। रेवती, श्रवण, हस्त, मृगशीर्ष, पुनर्वसु, अनुराधा, अश्विनी, चित्रा, रोहिणी, उत्तरात्रय अर्थात् उत्तराषाढ़ा, उत्तराफाल्गुनी तथा उत्तराभाद्रपद, धनिष्ठा एवं पुष्य नक्षत्र ये नक्षत्र दोषरहित कहे गए हैं। इसी प्रकार वारों में रविवार, सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार अन्नप्राशन- संस्कार हेतु शुभ कहे गए हैं। नए अन्न का आहार शिशु के अन्न भोजन के लिए श्रेष्ठ माना गया है। रिक्ता आदि अशुभ तिथियाँ एवं अशुभ योग इस अन्नप्राशन- संस्कार हेतु वर्जित कहे गये हैं। निर्धारित ग्रह, नक्षत्र, शुभवार देखकर एवं रिक्ता आदि तिथियों को छोड़कर यह संस्कार करना चाहिए । रवि लग्न में यह संस्कार किए जाने पर शिशु कुष्टी होता है। मंगल लग्न में किए जाने पर पित्तरोगी होता है। शनि लग्न में किए जाने पर वातरोगी एवं नीच का चन्द्र होने पर यह संस्कार किया जाए, तो भिखारी होता है। बुध लग्न में अन्नप्राशन किया जाए तो ज्ञानी, शुक्र लग्न में भोगी एवं गुरू लग्न में चिरायु होता है तथा पूर्ण चंद्रमा होने पर वह पूजा करने वाला और दान देने वाला होता है । Jain Education International - कंटक, अर्थात् चौथे, सातवें, दसवें एवं अन्तिम अर्थात् बारहवें निधन, अर्थात् आठवें, त्रिकोण, अर्थात् पाँचवें, नवें इन घरों में पूर्वोक्त ग्रह हो तो शरीर में शुभफल देते हैं। छठे और आठवें घर में चंद्रमा अशुभ होता है। केन्द्र, अर्थात् पहले, चौथे, सातवें, दसवें त्रिकोण, अर्थात् पाँचवें एवं नवें इन घरों में सूर्य हो, तो अन्न का नाश होता हैं । इस प्रकार बालक का छठे मास में एवं बालिका का पाँचवे मास में, पूर्वोक्त शुभ नक्षत्र, तिथि, वार एवं योग होने पर शिशु के चंद्रबल को देखकर अन्नप्राशन संस्कार करना चाहिए। इसकी विधि इस प्रकार है For Private & Personal Use Only 30 — गुरू पूर्वोक्त वेश को धारण कर शिशु के घर में जाकर देश में उत्पन्न होने वाले सभी अन्नों का संग्रह करे। साथ ही देश में उत्पन्न एवं नगर में प्राप्त होने वाले फलों एवं छः विकृतियों (दूध, दही, घी, तेल, गुड़ एवं तली हुई वस्तुओ) को संग्रहित करे । www.jainelibrary.org
SR No.001690
Book TitleJain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2005
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Culture, & Vidhi
File Size12 MB
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