SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर - 28 // आठवाँ उदय // नामकरण संस्कार-विधि वर्धमानसूरि का कथन है कि मृदु, ध्रुव एवं क्षिप्र संज्ञक नक्षत्रों में बालक का जातकर्म संस्कार करें। गुरू एवं भृगु (शुक्र) के चतुर्थ स्थान में होने पर नामकरण संस्कार करना प्रशंसित माना गया है। गृहस्थ गुरू शुचिकर्म के दिन, अथवा उसके दूसरे या तीसरे दिन, अथवा अन्य किसी शुभ दिन में आसन पर पंचपरमेष्ठी मंत्र का स्मरण करते हुए सुखपूर्वक बैठे। उसके बाद शिशु के पिता, दादा आदि हाथों में पुष्प, फल रखकर गृहस्थ गुरू (विधिकारक) एवं ज्योतिषी को साष्टांग नमस्कार करके इस प्रकार कहे – “भगवन् ! पुत्र का नामकरण करें।" उसके बाद गुरू कुलपुरूषों को, कुलवृद्धाओं को एवं कुल की स्त्रियों को सामने बैठाकर ज्योतिषी को जन्म-लग्न का प्ररूपण करने के लिए कहे। ज्योतिषी शुभपट्ट पर खड़िया मिट्टी द्वारा उसका जन्मलग्न लिखें। स्थान-स्थान पर ग्रह स्थापित करें। उसके बाद शिशु के पिता, दादा आदि जन्मलग्न का पूजन करें। वहाँ 12 स्वर्णमुद्रा, 12 चांदी की मुद्रा, 12 तांबे की मुद्रा, 12 सुपारी, 12 जाति के फल, 12 नारियल, 12 पान के पत्ते (अथवा नागकेशर) इनसे 12 लग्नों की पूजा करें। इसी प्रकार नौ-नौ वस्तुओ द्वारा नवग्रहों की पूजा करें। इस प्रकार प्रत्येक वस्तु की संख्या कुल मिलाकर इक्कीस होगी। लग्न-पूजा हो जाने पर उनके समक्ष ज्योतिषी जो लग्न–विचार कहता है, उसे सब ध्यानपूर्वक सुनें। लग्न का सम्पूर्ण वर्णन ज्योतिषी कुंकुम अक्षरों से पत्र में लिखकर शिशु के कुल-ज्येष्ठ को अर्पण करे। उसके बाद पिता आदि ज्योतिषी को वस्त्र, स्वर्ण आदि देकर उनका सम्मान करें। ज्योतिषी शिशु के जन्मनक्षत्र के अनुसार नामाक्षर बताकर अपने घर जाए। उसके बाद गृहस्थ गुरू सभी कुलपुरूषों, कुलवृद्धाओं एवं नारियों को सामने बैठाकर उनकी सम्मति से दूर्वा हाथ में लेकर परमेष्ठी मंत्र का स्मरण करते हुए, कुल वृद्धा के कान में जाति एवं कुलोचित (कुल के अनुरूप) नाम कहें। उसके बाद कुलवृद्धाएँ एवं नारियाँ गुरू के साथ, पुत्र को गोद में लिए हुए माता को शिविकादि (बैलगाड़ी आदि) वाहन में बैठाकर अथवा पैदल चलाते हुए, साथ में सधवा स्त्रियों द्वारा मंगल गीत गाते हुए, वाद्य बजाते हुए चैत्य (मन्दिर में) जाएं। वहाँ माता पुत्र सहित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001690
Book TitleJain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2005
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Culture, & Vidhi
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy